‘कबीर संत ही नहीं समाज
सुधारक भी थे' इस विषय पर
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कबीर संत और कवि ही नही एक सच्चे समाज सुधारक भी थे। कबीर के दोहे जिन्हें हम साखियां कहते हैं वो हमें जीवन का सच्चा पाठ पढ़ा जाते हैं।
उनके दोहों में जीवन का गहन दर्शन छुपा है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर तगड़ा प्रहार किया है। उन्होंने धर्म में व्याप्त पाखंड और अंधविश्वास पर तीखा कटाक्ष किया है। उन्होंने धर्म के विषय में हिंदु और मुसलमान दोनों पर समान रूप से प्रहार किया है।
कबीर ने ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना करने पर जोर दिया। वह मूर्ति पूजा के विरोधी थे। धर्मों में व्याप्त अनेक तरह के प्रखंडों के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने हमेशा सब लोगों को प्रेम और भाईचारे से रहने की शिक्षा दी। हिंसा के भी वो विरोधी थे और उन्होंने अहिंसा को अपनाने पर जोर दिया। उन्हें जानवरों को मारकर खाना पसंद नहीं था।
कबीर के अनुसार प्रेम, दया, करुणा ही सबसे बड़े गुण हैं। वह सच्चे और व्यवहारिक ज्ञान पर जोर देते थे उन्होंने किताबी ज्ञान को उतना महत्व नहीं दिया। कवि ने अपनी साधुक्कड़ी भाषा से उस समय समाज की हर कुप्रथा पर करारा प्रहार किया है।
कबीर के दोहे हमें जीवन को समझने की गहरी सीख देते हैं अतः से हम कह सकते हैं कि कबीर एक महान समाज सुधारक थे वह केवल संत या कवि ही नहीं थे बल्कि एक महान समाज सुधारक थे।