कबीर दास जी के अनुसार पाखंडपूर्ण भक्ति में मन की क्या दशा होती है?
A) मन एकाग्रचित्त न होकर, प्रभु भक्ति में न लग कर दसों दिशाओं की ओर घूमता है
B) मन केवल ईश्वर भक्ति करता है
C) मन की एकाग्रचित्तता माला फेरने वह जीभ चलाने में रत रहती है
D) मन हर पल उस ईश्वर को पाना चाहता है
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कबीरदास जी के अनुसार पाखंडपूर्ण भक्ति में मन एकाग्रचित्त न होकर, प्रभु भक्ति में न लगकर दसों दिशाओं की ओर घूमता है
सही विकल्प है ( A)
• कबीरदास जी ने यह स्पष्टीकरण निम्नलिखित दोहे के द्वारा दिया है।
•"माला तो कर में फिरें, जीभ फिरें मुख माहि मनुवा दह दिसी फिरें , यह तो सुमिरन नाहि ।*
• कबीरदास जी कहते है कि चाहे लाख बार माला फेर लो , लाख बार जीभ से भगवान का नाम लो परन्तु यदि मन एकाग्र नहीं, वह दसों दिशाओं में घूमता हो तो उसे प्रभु भक्ति नहीं कहते। वह तो पाखण्ड है।
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