कबीर दास का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर निबंध लिखे 350 से 400 शब्दों में
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Explanation:
ऐसा माना जाता है की सन् 1398 ई में कबीर दास जी का जन्म काशी के लहरतारा नामक क्षेत्र में हुआ था। कबीर दास जी हमारे भारतीय इतिहास के एक महान कवि थे, जिन्होंने भक्ति काल में जन्म लिया और ऐसी अद्भुत रचनाएँ की, कि वे अमर हो गए। इन्होंने हिन्दू माता के गर्भ से जन्म लिया और एक मुस्लिम अभिभावकों द्वारा इनका पालन-पोषण किया गया।कबीर के जन्म के संबंध में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं । कुछ विद्वानों ने इनको एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न होना प्रमाणित किया है और कुछ ने एक मुसलमान जुलाहे के यहाँ ।
कुछ भी हो, किंतु कबीर ने तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार ही स्वयं अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया । वह एक साथ ही द्रष्टा, स्रष्टा और युग-प्रवर्तक बने । स्वभाव से ही फक्कड़, मस्तमौला और अपने प्रति ईमानदार । विद्यालयी शिक्षा से वंचित ‘मसि कागद छुयौ नहीं कलम गह्रौ नहिं हाथ ।’
कबीरदास का व्यक्तित्व भक्ति, प्रेम तथा मानवता की विभिन्न धाराओं में बहा, जिसने उनकी जीवनप्रद वाणी को साहित्य की अतुल संपत्ति बना दिया । हिंदी साहित्य के हजार वर्षों के बीच कबीर जैसा व्यक्तित्व पैदा नहीं हुआ ।
कबीर संप्रदाय का सबसे बड़ा सिद्धांत ईश्वर अद्वैतता है । कबीर का ईश्वर सर्वव्यापी है । वह भौतिक पदार्थों का सेवन करनेवाले ईश्वर से सर्वथा भिन्न है । पत्थर की मूर्ति के रूप में उसकी उपासना करना कबीर के विचारों के विरुद्ध है ।
कबीर ने अपने राम को राम, हरि, गोपाल, साहब, राउर, खरसम आदि अनेक नामों से विभूषित किया हैlनिर्गुन राम, निर्गुन राम जपहु रे भाई । दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना । राम नाम का मरमु न जाना ।।”
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर के सिद्धांत को द्वैताद्वैत का विलक्षण समत्ववाद बनाया है; अर्थात् जो द्वैत और अद्वैत से भी विलक्षण है, परंतु उनके समान ही है, ऐसा ब्रहम का कवीर का था ।
Answer:
कबीर दास जी हमारे हिंदी साहित्य के एक जाने माने महान कवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक भी थे, उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतिओं को ख़त्म करने की बहुत कोशिश की, जिसके लिये उन्हें समाज से बहिष्कृत भी होना पड़ा, परन्तु वे अपने इरादों में अडिग रहे और अपनी अंतिम श्वास तक जगत कल्याण के लिये जीते रहे।इनका जीवन शुरू से ही संघर्षपूर्ण रहा है, जन्म किसी ब्राह्मण कन्या के उदर से लिया और उसने लोक-लाज के डर से इन्हें एक तालाब के पास छोड़ दिया। जहाँ से गुजर रहे एक जुलाहे मुस्लिम दंपति ने टोकरी में इन्हें देखा और इन्हें अपना लिया। और अपने पुत्र की तरह इनका पालन-पोषण किया।
इन्होंने बहुत अधिक शिक्षा नहीं प्राप्त की, परन्तु शुरू से ही साधु-संतों के संगत में रहे और इनकी सोच भी बेहद अलग थी। वे शुरू से हमारे समाज में प्रचलित पाखंडों, कुरीतियों, अंधविश्वास, धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों का खंडन और विरोध करते थे, और शायद यही वजह है की इन्होंने निराकार ब्रह्म की उपासना की। इनपर स्वामी रामानंद जी का बेहद प्रभाव था।
निष्कर्षवे बेहद ज्ञानी थे और स्कूली शिक्षा न प्राप्त करते हुए भी अवधि, ब्रज, और भोजपुरी व हिंदी जैसी भाषाओं पर इनकी सामान पकड़ थी। इन सब के साथ-साथ राजस्थानी, हरयाणवी, खड़ी बोली जैसी भाषाओं में महारथी थे। उनकी रचनाओं में सभी भाषाओं की झांकी मिल जाती है इस लिये इनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ व ‘खिचड़ी’ कही जाती है।
कबीर दास जी ने आम शिक्षा नहीं ली थी इस कारण उन्होंने स्वयं कुछ नहीं लिखा परन्तु इनके शिष्यों ने उनके बोल संग्रहित कर लिया। उनके एक शिष्य धर्मदास ने बीजक नामक ग्रन्थ का निर्माण किया। इस बीजक के तीन भाग हैं, जिनमें से पहला है; साखी, दूसरा सबद, और तीसरा रमैनी।
इन सब के अलावा सुखनिधन, होली अगम, आदि जैसी इनकी रचनाएँ बेहद प्रचलित हैं।