Hindi, asked by duragpalsingh, 1 year ago

कबीरदास जी का एक दोहा लिखिये और उसका अर्थ लिखिये। और वो दोहा आपको क्योंं पसंद है । 60-80 शब्द मे उत्तर दिजिए ।

Answers

Answered by abhi178
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कबीरदास जी के अनेकों दोहे हैं , जो मुझे पसंद है । किन्तु एक दोहा जो मुझे अत्यन्त पसंद है , वह है :
" दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥  "

इस दोहे का अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि कोई भी साधारण मनुष्य ईश्वर की आराधना तब ही किया करते हैं या दूसरे को याद किया करते हैं , जब उन्हें विपत्ति या दुःख का सामना करना पड़ता है ।ऐसा कोई भी नही है , जो सुख में दूसरे को याद करते हैं । अगर वे सुख में भी दूसरे को उसी तरह याद करे तो दुःख होने का सवाल ही पैदा नही होता ।

सरल शब्दों में कहे तो : वैसे मनुष्य को दुःख कभी नही होती है , जो सभी को सामान नजरिये से देखे , लोगो के ताखिफों में उनका साथ दे ।

असल में यह दोहा को मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया है । किस तरह व्यक्ति धनि होने के पश्चात अपने करीब को भूल जाते हैं , और जब विप्पत्ति आती है तो उनको याद करते हैं । कबीरदास जी ने बड़े ही सरलता से इस सत्य को दोहे में परिवर्तित किया है । अतः मुझे यह दोहा बहुत पसंद है।

Ankit1408: Tin dev ki bhakti me ye bhool pado sansar ,keh kabir nij naam bin kiise utro paar .
Ankit1408: kabir Tin dev ki jo karte bhakti ,unki kabhu na hove mukti
Ankit1408: ye dohe mujhe pasand h
Answered by kvnmurty
3
संत कबीर  का एक बढ़िया   दोहा:

          बोली एक अनमोल है , जो कोई  बोलै जानि ,
          हिये  तराजू तौलि के , तब  मुख  बाहर  आनि | 

    इसका अर्थ है कि एक ज्ञानी आदमी  ही जानता है  कि   हमारे बोल और बोलने कि शक्ति बहुत अमूल्य और अनमोल हैं ।  वे हमारे  मुह  के  बाहर निकल जाते हैं और सामनेवालों के कानों में चले जाते हैं | मानलो कि कुछ सही न कह पाएँ या गलत कह दिया तो, फिर हम चाहें तो भी उन बोलों को वापस नहीं ले सकते | 

   इसलिए बोलने से पहले अपने दिल की तराजू में तोलकर अच्छी तरह निर्णय लेलें कि वे  बोल सही हैं कि नहीं ।  अगर वे उत्तम और समयानकूल (उचित) हैं , तभी कहें ।  नहीं तो गले में ही दबालें । 

   यह मुझे  इसलिए पसंद है कि मैंने यह खुद अनुभव किया है । यह सच है । सब के लिए जरूरी है कि इस उपदेश (सलाह/नीति) का पालन करें।  मैंने कुछ बार जल्दी जल्दी  कुछ कुछ बोलकर  जगड़े में फसा । और बात बनाने के बजाय बिगड़ गई । बाद में पछताने से या माफी मांगने से हमेशा संबंध फिर जुड़ नहीं जाते । 

kvnmurty: :-) :-) :-)
duragpalsingh: Thanks sir
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