कबीरदास जी का एक दोहा लिखिये और उसका अर्थ लिखिये। और वो दोहा आपको क्योंं पसंद है । 60-80 शब्द मे उत्तर दिजिए ।
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कबीरदास जी के अनेकों दोहे हैं , जो मुझे पसंद है । किन्तु एक दोहा जो मुझे अत्यन्त पसंद है , वह है :
" दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥ "
इस दोहे का अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि कोई भी साधारण मनुष्य ईश्वर की आराधना तब ही किया करते हैं या दूसरे को याद किया करते हैं , जब उन्हें विपत्ति या दुःख का सामना करना पड़ता है ।ऐसा कोई भी नही है , जो सुख में दूसरे को याद करते हैं । अगर वे सुख में भी दूसरे को उसी तरह याद करे तो दुःख होने का सवाल ही पैदा नही होता ।
सरल शब्दों में कहे तो : वैसे मनुष्य को दुःख कभी नही होती है , जो सभी को सामान नजरिये से देखे , लोगो के ताखिफों में उनका साथ दे ।
असल में यह दोहा को मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया है । किस तरह व्यक्ति धनि होने के पश्चात अपने करीब को भूल जाते हैं , और जब विप्पत्ति आती है तो उनको याद करते हैं । कबीरदास जी ने बड़े ही सरलता से इस सत्य को दोहे में परिवर्तित किया है । अतः मुझे यह दोहा बहुत पसंद है।
" दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥ "
इस दोहे का अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि कोई भी साधारण मनुष्य ईश्वर की आराधना तब ही किया करते हैं या दूसरे को याद किया करते हैं , जब उन्हें विपत्ति या दुःख का सामना करना पड़ता है ।ऐसा कोई भी नही है , जो सुख में दूसरे को याद करते हैं । अगर वे सुख में भी दूसरे को उसी तरह याद करे तो दुःख होने का सवाल ही पैदा नही होता ।
सरल शब्दों में कहे तो : वैसे मनुष्य को दुःख कभी नही होती है , जो सभी को सामान नजरिये से देखे , लोगो के ताखिफों में उनका साथ दे ।
असल में यह दोहा को मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया है । किस तरह व्यक्ति धनि होने के पश्चात अपने करीब को भूल जाते हैं , और जब विप्पत्ति आती है तो उनको याद करते हैं । कबीरदास जी ने बड़े ही सरलता से इस सत्य को दोहे में परिवर्तित किया है । अतः मुझे यह दोहा बहुत पसंद है।
Ankit1408:
Tin dev ki bhakti me ye bhool pado sansar ,keh kabir nij naam bin kiise utro paar .
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संत कबीर का एक बढ़िया दोहा:
बोली एक अनमोल है , जो कोई बोलै जानि ,
हिये तराजू तौलि के , तब मुख बाहर आनि |
इसका अर्थ है कि एक ज्ञानी आदमी ही जानता है कि हमारे बोल और बोलने कि शक्ति बहुत अमूल्य और अनमोल हैं । वे हमारे मुह के बाहर निकल जाते हैं और सामनेवालों के कानों में चले जाते हैं | मानलो कि कुछ सही न कह पाएँ या गलत कह दिया तो, फिर हम चाहें तो भी उन बोलों को वापस नहीं ले सकते |
इसलिए बोलने से पहले अपने दिल की तराजू में तोलकर अच्छी तरह निर्णय लेलें कि वे बोल सही हैं कि नहीं । अगर वे उत्तम और समयानकूल (उचित) हैं , तभी कहें । नहीं तो गले में ही दबालें ।
यह मुझे इसलिए पसंद है कि मैंने यह खुद अनुभव किया है । यह सच है । सब के लिए जरूरी है कि इस उपदेश (सलाह/नीति) का पालन करें। मैंने कुछ बार जल्दी जल्दी कुछ कुछ बोलकर जगड़े में फसा । और बात बनाने के बजाय बिगड़ गई । बाद में पछताने से या माफी मांगने से हमेशा संबंध फिर जुड़ नहीं जाते ।
बोली एक अनमोल है , जो कोई बोलै जानि ,
हिये तराजू तौलि के , तब मुख बाहर आनि |
इसका अर्थ है कि एक ज्ञानी आदमी ही जानता है कि हमारे बोल और बोलने कि शक्ति बहुत अमूल्य और अनमोल हैं । वे हमारे मुह के बाहर निकल जाते हैं और सामनेवालों के कानों में चले जाते हैं | मानलो कि कुछ सही न कह पाएँ या गलत कह दिया तो, फिर हम चाहें तो भी उन बोलों को वापस नहीं ले सकते |
इसलिए बोलने से पहले अपने दिल की तराजू में तोलकर अच्छी तरह निर्णय लेलें कि वे बोल सही हैं कि नहीं । अगर वे उत्तम और समयानकूल (उचित) हैं , तभी कहें । नहीं तो गले में ही दबालें ।
यह मुझे इसलिए पसंद है कि मैंने यह खुद अनुभव किया है । यह सच है । सब के लिए जरूरी है कि इस उपदेश (सलाह/नीति) का पालन करें। मैंने कुछ बार जल्दी जल्दी कुछ कुछ बोलकर जगड़े में फसा । और बात बनाने के बजाय बिगड़ गई । बाद में पछताने से या माफी मांगने से हमेशा संबंध फिर जुड़ नहीं जाते ।
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