Kabhi Khabhi Dil wah bhi dekh leta hai jo Aankhen Nahin dekh pati on essay of 1000 words
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Hello........
"Kabhi kabhi dil wah bhi dekh leta hai jo aankhein nahi dekh pati "
Aaj is yugg mai aise bohat log milte hai jo sirf rang, rup aadi par jyada dhyan dete hai par unnse alag kuch log aise bhi hote hai jo hamari dil ki sundarta ko dekte hai. Aise log hi jeevan ka sahi mulya samajh pate hai.
Koi bhi insaan khane ka bhuka nai hota vo bhuka hota hai pyaar ka jo sirf vahi insaan de sakta hai jo dusre ko samjhe, usse pyaar kare, uske rup se bhadkar uske dil ko samjhe.
Aajkal sabko shook hai dogies palne ka. kehte hai kutte vafadar hote hai par hamesha unn logo ko maara jata hai, uski care karna bhul jate hai hum . Par fhir bhi vo puri shiddat se hamari raksha karta hai hamari hifajat karta hai . isliye hum logo ko jarurat hai aankon ki jagah dil se dekhne ki ,kissi ki jarurat ko samajhne ki, hamrari insaniyat dharm nibhane.
Mother Teresa ne kaha tha " their are more hunger for love rather than bread " arthat hum sabko mil jul ke prem se rehna chaiye.....
Iska jita jagta udharan Helen Keller hai jo sabko saman manti thi. kissi se bhi kissi bhi prakar ka bhed bhao nai karti thi. unki issi khubi ki wajah se aaj tak unhein yaad kiya jata hai...
To jaruri nai ki aankon se sab dekha jaye dil se bhi kuch cheeze dekhni chaiye..
hope it helps you... :))
"Kabhi kabhi dil wah bhi dekh leta hai jo aankhein nahi dekh pati "
Aaj is yugg mai aise bohat log milte hai jo sirf rang, rup aadi par jyada dhyan dete hai par unnse alag kuch log aise bhi hote hai jo hamari dil ki sundarta ko dekte hai. Aise log hi jeevan ka sahi mulya samajh pate hai.
Koi bhi insaan khane ka bhuka nai hota vo bhuka hota hai pyaar ka jo sirf vahi insaan de sakta hai jo dusre ko samjhe, usse pyaar kare, uske rup se bhadkar uske dil ko samjhe.
Aajkal sabko shook hai dogies palne ka. kehte hai kutte vafadar hote hai par hamesha unn logo ko maara jata hai, uski care karna bhul jate hai hum . Par fhir bhi vo puri shiddat se hamari raksha karta hai hamari hifajat karta hai . isliye hum logo ko jarurat hai aankon ki jagah dil se dekhne ki ,kissi ki jarurat ko samajhne ki, hamrari insaniyat dharm nibhane.
Mother Teresa ne kaha tha " their are more hunger for love rather than bread " arthat hum sabko mil jul ke prem se rehna chaiye.....
Iska jita jagta udharan Helen Keller hai jo sabko saman manti thi. kissi se bhi kissi bhi prakar ka bhed bhao nai karti thi. unki issi khubi ki wajah se aaj tak unhein yaad kiya jata hai...
To jaruri nai ki aankon se sab dekha jaye dil se bhi kuch cheeze dekhni chaiye..
hope it helps you... :))
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कभी कभी ह्रदय वह भी देख लेता है जो आँख देख नहीं पाती है
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ह्रदय !! एक अनमोल , अनोखा और ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है । पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक , मुँह , जीभ , त्वचा और लिंग हैं किन्तु ये सभी बेकार हैं यदि हमारे पास ह्रदय न हो । आँख न हो मनुष्य हृदय से देख सकता है पर हृदय न होने से आँख बेकार है। तुलसीदास जी ने सही कहा है।
चितवनि चारु मारु मदहरनी। भावत हृदय जाय नहिं बरनी।।
अथात् -
हृदय एक ऐसी गहरी खाड़ी है जिसकी थाह विचारे जीव को उसमें रहने पर भी कभी-कभी उस भाँति नहीं मिलती जैसे ताल की मछलियाँ दिन रात पानी में बिलबिलाया करती हैं पर उसकी थाह पाने की क्षमता नहीं रखती ।
ह्रदय द्वारा कही गयी , सुनी गयी या फिर समझी हुई बातें का असत्य होना लगभग असंभव हैं । ये हमें प्रेम करना सिखाती है । विभिन्न प्रकार में भेद करना सिखाती है , माता का प्रेम क्या है, या फिर पत्नी का प्रेम क्या है |
ह्रदय वो सारी चीजें देख लेती है जो आखें देख नही पाती । माँ इतनी महान क्यों होती है , माँ को ईश्वर से भी उँचा दर्जा दिया गया है आखिर क्यों ?
क्योंकि वह अपने बच्चे के भाव को परख कर बता देती है उसे क्या चाहिए , क्या जरूरत है। उनके सामने खड़े आपको अपनी आँखों से कुछ पता नही चलेगा माँ ने आखिर समझा कैसे कि मुझे क्या चाहिए क्या नहीं ।
कारण है माँ ह्रदय से आपको चाहती है , आपका ह्रदय माँ को संदेश पहुचाने का काम करता है , वो बता देता है कि आपको क्या चाहिए ?
आपने एक कहानी सुनी होगी कि एक सुन्दर सी राजकुमारी को जानवर (बीस्ट) से प्यार हो जाता है । असल में प्यार का होना केवल सोंदर्य ( आँखों द्वारा देखी गयी) से नही अपितु ह्रदय का मिलन है । राजकुमारी का ह्रदय बीस्ट के ह्रदय को समझ पाता है कि यह बीस्ट नही बल्कि बीस्ट के रुप में राजकुमार है । और अंत में ये सच होता है बीस्ट एक राजकुमार बन जाता है।
राजकुमारी ने अपने ह्रदय से परखा तभी तो उन्हे योग्य राजकुमार प्राप्त हुआ , अगर वो आँखों देखा सच मानती तो शायद वो राजकुमार को प्राप्त न कर पाती , जो उनके योग्य था ।
हम जानते हैं कोई भी काम आप बिना दिमाग लगाये नही कर सकतै हैं पर यदि आप काम में दीमाग के साथ - साथ मन ( ह्रदय) भी लगाते हैं , तो आप तरक्की के उन बुलन्दियों को छू सकते हैं जिसके सपने आप अक्सर खुली आँखों मे देखा करते हैं । आपने सुना होगा अल्बर्ट आइन्स्टाईन के बारे में , वे भौतिकी को छोड़कर किसी विषय को पसंद नही करते थे, भौतिकी को उन्होने अपना जुनून बना लिया था , वो ह्रदय से सच्चे मन से कार्य करते थे । आज उन्हे भौतिकी का पिता माना जाता है।
आपने श्रीनिवासन रामानुजन का नाम तो सुना ही होगा । और आपको उनके बारे में ये भी जानकारी होगी कि वे सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ थे ,उन्हे महान गणितज्ञ , गणित के प्रति चाह ने बनाया । वे को सच्चे हृदय से चाहते थे।
रामकृष्ण परमहंस ने पहली मुलाकात में विवेकानन्द के भविष्य के बारे में में जान गये थे कि ये युवक असाधारण मानव है , उन्होने , विवेकानन्द में वो आत्मबल देखा था जो साधारण व्यक्ति में अक्सर नही पाया जाता । वैसे तो विवेकानन्द जी को अनेकों ने देखा होगा । पर उनके प्रतिभा की परख परमहंस जी ने की ।
आज दूनिया स्वामी विवेकानन्द जी के बताये मार्ग पर चल रही है। युवा के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
ह्रदय की ताकत १००० हाथियों के बल से भी ज्यादा मजबूत होती है । केवल एकदिन दिल ( ह्रदय ) लगाकर पढाई कर देखीये , मुझे विश्नास है आप जिस सिध्दांत कई दिनों से नही समझ पाया , वो आप आसानी से समझेंगे ।
कृष्ण को हृदय से अपना मानने वाली मीराबाई को कौन नही जानता । उनकी कृृष्ण के प्रति असीम भक्ति इस भजन आप महसूस कर सकते हैं मीराबाई के भजन से
" तुम बिन नैण दुखारा म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥ "
कहा जाता है कि मीराबाई को ईश्वर दिखते थे ।
मैने तो कभी नही देखा और आपने भी नही देखा होगा । क्योंकि हम ईश्वर से प्रेम तो करते हैं किन्तु मीरा की तरह उन्हे हृदय में नही बल्कि मंदिरों में ढूँढते हैं । ईश्वर के दर्शन केवल हृदय में किया जा सकता है।
ऐसे कई ऊदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं, जो हमें यह कहने पर मजबूर कर देती है कि " कभी - कभी ह्रदय वो देख लेता है जहाँ आँखे नही देख पाती है। "
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ह्रदय !! एक अनमोल , अनोखा और ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है । पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक , मुँह , जीभ , त्वचा और लिंग हैं किन्तु ये सभी बेकार हैं यदि हमारे पास ह्रदय न हो । आँख न हो मनुष्य हृदय से देख सकता है पर हृदय न होने से आँख बेकार है। तुलसीदास जी ने सही कहा है।
चितवनि चारु मारु मदहरनी। भावत हृदय जाय नहिं बरनी।।
अथात् -
हृदय एक ऐसी गहरी खाड़ी है जिसकी थाह विचारे जीव को उसमें रहने पर भी कभी-कभी उस भाँति नहीं मिलती जैसे ताल की मछलियाँ दिन रात पानी में बिलबिलाया करती हैं पर उसकी थाह पाने की क्षमता नहीं रखती ।
ह्रदय द्वारा कही गयी , सुनी गयी या फिर समझी हुई बातें का असत्य होना लगभग असंभव हैं । ये हमें प्रेम करना सिखाती है । विभिन्न प्रकार में भेद करना सिखाती है , माता का प्रेम क्या है, या फिर पत्नी का प्रेम क्या है |
ह्रदय वो सारी चीजें देख लेती है जो आखें देख नही पाती । माँ इतनी महान क्यों होती है , माँ को ईश्वर से भी उँचा दर्जा दिया गया है आखिर क्यों ?
क्योंकि वह अपने बच्चे के भाव को परख कर बता देती है उसे क्या चाहिए , क्या जरूरत है। उनके सामने खड़े आपको अपनी आँखों से कुछ पता नही चलेगा माँ ने आखिर समझा कैसे कि मुझे क्या चाहिए क्या नहीं ।
कारण है माँ ह्रदय से आपको चाहती है , आपका ह्रदय माँ को संदेश पहुचाने का काम करता है , वो बता देता है कि आपको क्या चाहिए ?
आपने एक कहानी सुनी होगी कि एक सुन्दर सी राजकुमारी को जानवर (बीस्ट) से प्यार हो जाता है । असल में प्यार का होना केवल सोंदर्य ( आँखों द्वारा देखी गयी) से नही अपितु ह्रदय का मिलन है । राजकुमारी का ह्रदय बीस्ट के ह्रदय को समझ पाता है कि यह बीस्ट नही बल्कि बीस्ट के रुप में राजकुमार है । और अंत में ये सच होता है बीस्ट एक राजकुमार बन जाता है।
राजकुमारी ने अपने ह्रदय से परखा तभी तो उन्हे योग्य राजकुमार प्राप्त हुआ , अगर वो आँखों देखा सच मानती तो शायद वो राजकुमार को प्राप्त न कर पाती , जो उनके योग्य था ।
हम जानते हैं कोई भी काम आप बिना दिमाग लगाये नही कर सकतै हैं पर यदि आप काम में दीमाग के साथ - साथ मन ( ह्रदय) भी लगाते हैं , तो आप तरक्की के उन बुलन्दियों को छू सकते हैं जिसके सपने आप अक्सर खुली आँखों मे देखा करते हैं । आपने सुना होगा अल्बर्ट आइन्स्टाईन के बारे में , वे भौतिकी को छोड़कर किसी विषय को पसंद नही करते थे, भौतिकी को उन्होने अपना जुनून बना लिया था , वो ह्रदय से सच्चे मन से कार्य करते थे । आज उन्हे भौतिकी का पिता माना जाता है।
आपने श्रीनिवासन रामानुजन का नाम तो सुना ही होगा । और आपको उनके बारे में ये भी जानकारी होगी कि वे सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ थे ,उन्हे महान गणितज्ञ , गणित के प्रति चाह ने बनाया । वे को सच्चे हृदय से चाहते थे।
रामकृष्ण परमहंस ने पहली मुलाकात में विवेकानन्द के भविष्य के बारे में में जान गये थे कि ये युवक असाधारण मानव है , उन्होने , विवेकानन्द में वो आत्मबल देखा था जो साधारण व्यक्ति में अक्सर नही पाया जाता । वैसे तो विवेकानन्द जी को अनेकों ने देखा होगा । पर उनके प्रतिभा की परख परमहंस जी ने की ।
आज दूनिया स्वामी विवेकानन्द जी के बताये मार्ग पर चल रही है। युवा के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
ह्रदय की ताकत १००० हाथियों के बल से भी ज्यादा मजबूत होती है । केवल एकदिन दिल ( ह्रदय ) लगाकर पढाई कर देखीये , मुझे विश्नास है आप जिस सिध्दांत कई दिनों से नही समझ पाया , वो आप आसानी से समझेंगे ।
कृष्ण को हृदय से अपना मानने वाली मीराबाई को कौन नही जानता । उनकी कृृष्ण के प्रति असीम भक्ति इस भजन आप महसूस कर सकते हैं मीराबाई के भजन से
" तुम बिन नैण दुखारा म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥ "
कहा जाता है कि मीराबाई को ईश्वर दिखते थे ।
मैने तो कभी नही देखा और आपने भी नही देखा होगा । क्योंकि हम ईश्वर से प्रेम तो करते हैं किन्तु मीरा की तरह उन्हे हृदय में नही बल्कि मंदिरों में ढूँढते हैं । ईश्वर के दर्शन केवल हृदय में किया जा सकता है।
ऐसे कई ऊदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं, जो हमें यह कहने पर मजबूर कर देती है कि " कभी - कभी ह्रदय वो देख लेता है जहाँ आँखे नही देख पाती है। "
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