Kabir Das Ji kyu apne aap ko do Kiya Karte Hain
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Hey friend ,,,,
Here is your answer:-----Kabir Das ने आज से सदियों पहले वह कर दिखाया जिसे आज भी हम कर पाने से डरते हैं – कबीर दास ने अपने समय के बड़े-बड़े दिग्गजों को और समाज की तमाम धार्मिक कुरीतियों को खुली चुनौती दी । सबसे बढ़कर, कबीर दास ने ज़िन्दगी जीने का जो तरीका सामने रखा, वह बेमिसाल था ।Kabir ke Dohe हमें ज़िन्दगी जीने का बहुत सुन्दर तरीका सिखा सकते हैं और मुश्किल घड़ियों में हमारी बहुत मदद कर सकते हैं । हमें बहुत बड़ी गलतियाँ करने से, किसी का बुरा करने से, कबीर आज भी बचा सकते हैं । क्या आपको ये सब बातें किताबी लगती हैं? चलिए आपकी ही ज़िन्दगी से एक उदाहरण आपके सामने रखते हैं:
संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग।
(अर्थ: सच्चा इंसान वही है जो अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ता, चाहे कितने ही बुरे लोग उसे क्यों न मिलें, बिलकुल वैसे ही जैसे हज़ारों ज़हरीले सांप चन्दन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद चन्दन कभी भी विषैला नहीं होता ।)
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।
(अर्थ: एक अच्छे इंसान को सूप जैसा होना चाहिए जो कि अनाज को तो रख ले पर उसके छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर कर दे ।)
धन्यवाद ☺☺☺☺☺ मैं आपकी केवल इतनी ही सहायता कर सकता हूँ।।।।
थैंक्स☺☺☺☺
Here is your answer:-----Kabir Das ने आज से सदियों पहले वह कर दिखाया जिसे आज भी हम कर पाने से डरते हैं – कबीर दास ने अपने समय के बड़े-बड़े दिग्गजों को और समाज की तमाम धार्मिक कुरीतियों को खुली चुनौती दी । सबसे बढ़कर, कबीर दास ने ज़िन्दगी जीने का जो तरीका सामने रखा, वह बेमिसाल था ।Kabir ke Dohe हमें ज़िन्दगी जीने का बहुत सुन्दर तरीका सिखा सकते हैं और मुश्किल घड़ियों में हमारी बहुत मदद कर सकते हैं । हमें बहुत बड़ी गलतियाँ करने से, किसी का बुरा करने से, कबीर आज भी बचा सकते हैं । क्या आपको ये सब बातें किताबी लगती हैं? चलिए आपकी ही ज़िन्दगी से एक उदाहरण आपके सामने रखते हैं:
संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग।
(अर्थ: सच्चा इंसान वही है जो अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ता, चाहे कितने ही बुरे लोग उसे क्यों न मिलें, बिलकुल वैसे ही जैसे हज़ारों ज़हरीले सांप चन्दन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद चन्दन कभी भी विषैला नहीं होता ।)
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।
(अर्थ: एक अच्छे इंसान को सूप जैसा होना चाहिए जो कि अनाज को तो रख ले पर उसके छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर कर दे ।)
धन्यवाद ☺☺☺☺☺ मैं आपकी केवल इतनी ही सहायता कर सकता हूँ।।।।
थैंक्स☺☺☺☺
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