Kabir Das ki bhakti Bhawna par Prakash daliye
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कबीरदास जी निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं। जो एक ईश्वर पर विश्वास रखते थे। उन्होंने मूर्ति पूजा काम खंडन किया है। उनके अनुसार यदि पत्थर को पूजने से ईश्वर मिलते हैं तो वह केवल पत्थर को ही पूंजना चाहते हैं।
''पाथर पूजै हरी मिलै, तो मैं पूजूँ पहार ।
ताते तो चक्की भली, पीसि खाय संसार॥''
वह समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करते थे। उनका भक्ति मार्ग अत्यंत सरल है वह ईश्वर को मंदिर , मस्जिद में नहीं बल्कि अपने मन में ढूंढ़ने बोलते थे।
वह यह भी है कहते हैं कि नाम से बड़ा इंसान का कर्म होता है इसलिए सदैव कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होय। सुबरन कलश सूरा भरा, साधू निंदै सोय॥"
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कबीर दास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए :
कबीर दास जी एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में रहकर अंधविश्वासों, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। कबीर दास भक्तिकाल के निर्गुण कवियों में एक थे | वह निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे । कबीर जी ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरीतियों, तीर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजा आदि का खुलकर विरोध किया |
व्याख्या :
कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन तो अनमोल है इसलिए हमें अपने मानव जीवन में किसी को दुःख नहीं चाहिए बल्कि हमें अपने अच्छे कर्मों के द्वारा अपने जीवन को उद्देश्य बनाना चाहिए।
कबीर आज इस दुनिया में नहीं है, मगर उनकी बातें आज भी हम सभी के लिए अंधेरे में रोशनी का काम करती है | कबीर जी सन्त कवि और समाज सुधारक थे।
कबीर जी के दोहे आज तक ज्ञान देते है | हम आज तक कबीर के सिद्धांतों और शिक्षाओं को अपने जीवन शैली का आधार मानते है | कबीर जी ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरितियों, तिर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजादि का खुलकर विरोध किया |
कबीर जी जगह-जगह जा कर पूजा करना , ईश्वर को खोजना , ईश्वर को खोजने का दिखावा करना यह सब अपने समय को बर्वाद करना है | ईश्वर की भक्ति हमें सच्चे दिल से करनी चाहिए | दुनिया से दूर मोह माया को छोड़ कर ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए |