kabir das ki bhasha shaili
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कबीर की रचनाओं में अनेक भाषाओं के शब्द मिलते हैं यथा - अरबी, फ़ारसी, पंजाबी, बुन्देलखंडी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि के शब्द मिलते हैं इसलिए इनकी भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी' या 'सधुक्कड़ी' भाषा कहा जाता है।
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कबीर की भाषा के विषय में विद्वानों के बीच पर्याप्त मतभेद है पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर की भाषा के विषय में लिखा है भाषा पर कबर का जबरदस्त अधिकार था. वह वाणी के डिक्टेटर थे जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसे उसी रुप में भाषा से करवा दिया बन गया है तो सीधे-सीधे नहीं तो दरस दे कर.
कबीर की भाषा में अनेक भाषाओं के तत्व मिश्रित है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे साधु कड़ी भाषा का है अर्थात राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली इसका कारण संभवत कबीर पर सिद्धांतों का प्रभाव है कि किन बातों का प्रचार पंजाब और राजस्थान के और अधिक था.
उनकी भाषा का सबसे आकाश शंभू शरण लता और दो तूफान है इस दृष्टि से कभी रविदास से अधिक काम लेते हैं वह बातों को घुमा फिरा कर कहने में विश्वास नहीं रखते कबीर का व्यंग अचूक है.
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