Hindi, asked by RiyaGungun, 3 months ago

Kabir Das ki Shiksha jivani.....in hindi...​

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Answered by shubhshubhi2020
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Answer:

कबीर की शिक्षा के बारे में यहाँ कहा जाता हैं कि कबीर को पढने-लिखने की रूचि नहीं थी. बचपन में उन्हें खेलों में किसी भी प्रकार शौक नहीं था. गरीब माता-पिता होने से मदरसे में पढ़ने लायक स्थिति नहीं थी. दिन भर भोजन की व्यवस्था करने के लिए कबीर को दर-दर भटकना पड़ता था. इसी कारण कबीर कभी किताबी शिक्षा नहीं ले सके.

आज हम जिस कबीर के दोहे के बारे में पढ़ते हैं वह स्वयं कबीर ने नहीं बल्कि उनके शिष्यों ने लिखा हैं. कबीर के मुख से कहे गए दोहे का लेखन कार्य उनके शिष्यों ने किया था. उनके शिष्यों का नाम कामात्य और लोई था. लोई का नाम कबीर के दोहे में कई बार इस्तेमाल हुआ हैं. संभवतः लोई उनकी बेटी और शिष्या दोनों थी.

Answered by sanskarpatel18
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Answer:

ऐसा कहा जाता हैं कि कबीर को बचपन में पढ़ने-लिखने में कोई रूचि नहीं थी और साथ ही न ही उनकी कोई खेल-कूद में रूचि थी। परिवार में अत्यधिक गरीबी के कारण उनके माता-पिता भी उनको पढ़ाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए कबीर ने कभी भी अपने जीवन में किताबी शिक्षा ग्रहण नहीं की।

कहा जाता हैं कि कबीर के मुख से कहे गये दोहों को लिखित रूप उनके शिष्यों द्वारा किया गया। कबीर के कामात्य और लोई नाम के दो शिष्य थे, जिनका कबीर ने अपने दोहों में कई बार ज़िक्र किया हैं।

कबीर के दौर में काशी में रामानंद प्रसिद्ध पंडित और विद्वान व्यक्ति थे, कबीर ने कई बार रामानंद से मिलने और उन्हें अपना शिष्य बनाने की विनती कि लेकिन उस समय जातिवाद अपने चरम पर था इसलिए हर बार उन्हें आश्रम से भगा दिया जाता था।

एक दिन कबीर ने गुरु रामानंद से मिलने की तरकीब लगायी। रामानंद रोज सुबह जल्दी 4 बजे गंगा स्नान करने घाट पर जाया करते थे, एक दिन कबीर उनके रास्ते में लेट गये। जैसे ही रामानंद उस रास्ते से निकले उनका पैर कबीर पर पड़ा।

बालक कबीर को देखकर अचानक से उनके मुंह से निकल पड़ा “राम-राम”, अपने गुरु रामानंद (Kabir Das ke Guru ka Naam) को प्रत्यक्ष देखकर कबीर बेहद खुश हुए और कबीर को राम-राम नाम का गुरु मन्त्र मिल गया। रामानंद कबीर की श्रद्धा को देखकर अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया।

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