कह रहा एक था “तू तो, कब से ही सुना रही
अब आ पहुँची लो देखो, आगे वह भूमि यही
पर बढ़ती ही चलती है, रुकने का नाम नहीं है
वह तीर्थ कहाँ है कह तो, जिसके हित दौड़ रह
भूमि = तीर्थस्थान। हित = के लिए।
स्तृत सर्ग हिन्दी की पाठ्यपुस्तक में संकलित एवं छ
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