कक्षा 9 वी हिंदी पुस्तक के किन्ही दो लेखक कवियों का सचित्र चित्र साहित्य जीवन प्रस्तुति बताते हुए उनकी एक एक रचना को लिखिए.
please answer kar do important hai
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1. सोहनलाल द्विवेदी
श्री सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1905 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक गाँव में एक संपन्न परिवार में हुआ। 1938 से 1942 तक ये दैनिक राष्ट्रीय पत्र 'अधिकार' का लखनऊ
से संपादन करते रहे। 'भैरवी', 'सेवाग्राम', 'जय भारत जय' आदि में इनकी कविताएँ संकलित हैं। 'कुणाल' ऐतिहासिक आधार पर लिखा गया एक प्रबंध काव्य है। 'वासवदत्ता' और 'विषपान' भी इनके प्रसिद्ध आख्यान काव्य हैं।
द्विवेदी जी ने बालोपयोगी कविताएँ भी लिखी हैं। 'दूध बताशा', 'बालभारती', 'बाँसुरी और झरना', 'बच्चों के बापू', 'शिशु भारती', 'हँसो हँसाओ', 'चाचा नेहरू' इनके बालोपयोगी काव्य रचनाएँ हैं। द्विवेदी जी के काव्य में गांधीवाद, राष्ट्रीय जागरण, स्वदेशाभिमान,
भारत की गरिमापूर्ण संस्कृति, ग्राम सुधार, हरिजन उद्धार और समाज सुधार का स्वर मुखरित हुआ है।
द्विवेदी जी की भाषा सरस तथा ओजपूर्ण है। 1988 में इनका निधन हो गया।
एक रचना
वह जन्मभूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी
ऊँचा खड़ा हिमालय, आकाश चूमता है, नीचे चरण तले पड़, नित सिंधु' झूमता है।
गंगा, यमुना, त्रिवेणी, नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली, पग-पग पर छहर रही हैं।
वह पुण्यभूमि मेरी, वह स्वर्णभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते, जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में।
अमराइयाँ' घनी हैं, कोयल पुकारती है।
बहती मलय पवन है, तन-मन सँवारती है। वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी। गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी।
जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी, पुनीत गीता ।
जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्धभूमि मेरी, वह बुद्धभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
- सोहनलाल द्विवेदी
2. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
नई कविता के विख्यात कवि श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 15 सितंबर, 1927 ई० को हुआ।
सन् 1965 में इन्होंने 'दिनमान' साप्ताहिक पत्रिका के उपसंपादक के पद पर कार्य किया। इसके बाद इन्हें बच्चों की प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय मासिक पत्रिका 'पराग' के संपादन की जिम्मेदारी मिली, जिसका अत्यंत सफलतापूर्वक वहन किया।
सन् 1983 में इनका आकस्मिक निधन हो गया, जो साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति थी।
इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। 'काठ की घंटियाँ', 'बाँस का पुल', 'गर्म हवाएँ', 'एक सूनी नाव', 'कुआवो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूँटियों पर टँगे लोग' - काव्य संग्रह, 'पागल कुत्तों का मसीहा', 'सोया हुआ जल' उपन्यास 'बकरी' नाटक तथा लड़ाई-कहानी। इन्होंने प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी लिखा। 'दिनमान' में प्रकाशित 'चरखे और चरचे स्तंभ के लिए इन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त हुई।
एक रचना
मेघ आए
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार' चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन' ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
'बाँकी चितवन' उठा नदी ठिठकी, घूँघट सरकाए।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार' की
'बरस बाद सुधि लीन्हीं'
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-उन के सँवर के।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
'क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।'
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके ।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना