Kalam aur copy ke beech mein samvad Hindi mein
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कलम और कॉपी के बीच में संवाद :
कलम (कॉपी से ) : मैं तुमसे बहुत खुश रहती हूँ Iतुम्हें प्रणाम करती हूँ लेकिन क्या कहूँ तुम इतने बड़े होकर मुझसे छोटे ही हो जाते हो I
कॉपी (गुस्से से ) : तुम मुझे प्रणाम कर रही हो या गुस्सा दिला रही हो Iपहले मैं हूँ फिर तू है ,मैं नहीं तू चलेगी कैसे I
कलम :पहले मैं हूँ फिर तू है ज़रा समझ के देख I
कॉपी :वो कैसे ?
कलम :वो ऐसे कि मैं सृष्टि में ब्रह्मा के हाथों सबसे पहले आई हूँ Iतब तुम नहीं थे तुम्हारी उत्पत्ति नहीं हुई थी Iलिखने का काम भोजपत्र पर होता था I फिर उसको कई ऋषिगण पढ़ -पढ़ कर याद कर लेते थे Iफिर उनके मुख से सुनकर उनके छात्र याद कर लेते थे Iउन्हें स्रुतिधर कहा जाता था I
कॉपी :कुछ इतिहास क्या पढ़ लिया अपनी गुण बखानने लगी I मैं तो सर्वव्यापी हूँ बच्चे से लेकर वृद्धों तक मुझे सम्मान के साथ रखते हैं ,लिखते हैं.पढ़ते हैं I
कलम : अरे !ज़रा दिनकर जी की रचना तो ज़रा सुन लो :
"पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे ,
और प्रज्ज्वलित प्राण ,देश क्या कभी मिटेगा मारे II
लहू गर्म रखने को कलम होती चिंगारी ,
तुमने इतने ओछे बल पर ले ली विपदा सारी II
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