Hindi, asked by viratehravp, 1 year ago

Kalam ki atmakatha for 7

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Answered by BrainlyPromoter
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यह कलम, ये पन्ने,
ये ख्वाब, और ये सपने
सब काफिर हैं.
जीने को मुतआस्सिर हैं.

जी हाँ! मैं एक काफिर हूँ. मेरा कोई भगवान नहीं है, कोई खुदा नहीं है. मैं तो सिर्फ उन ख़्वाबों और ख्यालों के सहारे जिंदा हूँ जो मुझे रोज़ नींद से जगाते हैं. कईओं की हाथों की मेहंदी और कईओं के आँखों का सूरमा हूँ मैं. चाँद से टपकी पिघली हुई रौशनी से सीली वो रात हूँ मैं. मैं ज्ञात हूँ और अज्ञात भी हूँ. मैं उस ख़त में लिखी वह धुंधली सी बात हूँ. मैं लफ्ज़ हूँ, मैं सदियों पुरानी हूँ लेकिन फिर भी सब्ज़ हूँ.



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Answered by Mahir333
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अब तक मैंने बहुतों की आत्मकथा कथा लिखी है | आज मैं खुद अपनी आत्मकथा सुन रही हूं |
अपने बुद्धि बल से मनुष्य को भाषा का ज्ञान हुआ | भाषा में उसे अपने अनुभव लिखने की इच्छा हुई | तब उसे मेरी जरूरत पड़ी | मेरे साथ ही कागज और स्याही का भी जन्म हुआ |
मेरा सबसे पहला रूप मोर पंख का था | अपना वह रूप मुझे बड़ा अच्छा लगता था | कुछ समय के बाद मनुष्य ने मुझे नरकट से बनाना शुरू किया |
नरकट के बाद में लकड़ी के होल्डर के रूप में आ गई | मेरी जीब को लोग निब कहते थे | मैं अपनी निब को स्याही में डुबोती थी फिर कागज पर लिखती थी | पेंसिल के रूप में भी मैंने बहुत लिखा | धीरे-धीरे फैशन का जमाना आया | मैंने भी अपना रूप बदला | अब मैं बॉलपेन के रूप में हूं | अपना यह रूप मुझे बहुत पसंद है |
इस तरह मोरपंख, नरकट, पेंसिल, स्याही की पेन और बॉलपेन आदि मेरी विकास यात्रा है | मेरी वह यात्रा कभी नहीं रुकेगी |
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