Hindi, asked by shalomsachin9993, 9 months ago

‘कलम का सिपाही¹ किस साहित्यकार की जीवनी है ?

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Answered by romitanag
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Answer:

ma kuch samjha nahi sorry yar

Answered by jayathakur3939
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प्रेमचंद : क़लम का सिपाही हिन्दी के विख्यात साहित्यकार अमृत राय द्वारा रचित एक जीवनी है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

“अमृतराय” प्रसिद्ध उपन्यासकार, निबन्धकार, समीक्षक तथा अनुवादक थे। वे कहानी सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद के छोटे पुत्र थे । पिता की तरह अमृतराय मूलतः कहानीकार व उपन्यासकार थे। श्रेष्ठ अनुवादक व जीवनीकार के रूप में भी उनकी ख्याति थी। इसके साथ ही एक व्यंग्यकार और समालोचक के रूप में भी वे जाने जाते थे। प्रेमचंद की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। नाट्य-लेखन में भी सक्रिय रहे। अंग्रेज़ी, बंगला और हिन्दी पर अमृतराय को समान अधिकार प्राप्त था।

अपना और परिवार का पालन पोषण करने के लिए प्रेमचंद अपनी क़िस्मत आजमाने 1934 में माया नगरी मुंबई पहुंचे | अजंता कंपनी में कहानी लेखक की नौकरी भी की, लेकिन साल भर का अनुबंध पूरा करने से पहले ही वापस घर लौट आए| हालांकि प्रेमचंद की कहानियों, उनके उपन्यासों पर कई फ़िल्में बनीं, लेकिन जनता ने उनके साथ न्याय नहीं किया |प्रेमचंद के उपन्यास या कहानी पर बनी अगर किसी फ़िल्म ने सफलता का मुंह देखा तो वो थी 1977 में बनीं 'शतरंज के खिलाड़ी...' इसके निर्देशक थे सत्यजित रे | इस फ़िल्म को तीन फ़िल्म फेयर अवार्ड मिले | इस फ़िल्म की कहानी अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दो अमीरों के ईद गिर्द घूमती है |

प्रेमचंद की तीन कहानियों पर फ़िल्में बनीं जिनमें 'सद्गति' और 'शतरंज के खिलाड़ी' सत्यजीत रे ने हिंदी में बनाई और 'कफ़न' पर मृणाल सेन ने फ़िल्म बनाई | इसके आलावा 'गोदान', 'गबन' और 'हीरा मोती' को याद किया जा सकता है |   प्रेमचंद की रचनाएँ तो सीमित हैं किन्तु भारतीय जन-मानस पर उनका प्रभाव असीमित और शाश्वत है | लेकिन आज प्रेमचंद का गुणगान करने के स्थान पर ज़रुरत इस बात की है कि उनका अनुकरण कर हम भी उन्हीं की तरह अन्याय के खिलाफ़ साहस के साथ आवाज़ उठाएं और धर्म के, समाज के , राजनीति के, असंख्य भ्रष्ट ठेकेदारों को बेनकाब कर उनको उनके सही अंजाम तक पहुंचाएं और मजलूमों को, मेहनतकश को, सर्वहारा को, उनका वाजिब हक़ दिलवाएं |

भारत के ग्रामीण जीवन को प्रेमचंद ने आम लोगों की भाषा में बयां किया और 'गोदान', 'गबन', 'निर्मला', 'कर्मभूमि', 'सेवासदन', 'कायाकल्प', 'प्रतिज्ञा' जैसे उपन्यासों और 'कफ़न', 'पूस की रात', 'नमक का दारोगा', 'बड़े घर की बेटी', 'घासवाली' जैसी कई कहानियों में लिख डाला | लेकिन उस समय की जो समस्याओं थी, वो तो आज भी वैसे ही है, तो फिर प्रेमचंद के बाद उस तरह सामाजिक सरोकारों वाला लेखक क्यों नहीं मिलता ?

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