kamleshwar ki kisi kahani ka saar
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कमलेश्वर की एक कहानी
जार्ज पंचम की नाक
का सार
“जार्ज पंचम की नाक” कहानी हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार ‘कमलेश्वर’ द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक कहानी है। ये कहानी भारत की आजादी के थोड़े समय बाद के समयकाल की है। ये कहानी हमारी उस गुलाम मानसिकता पर तीखा व्यंग्य करती जिससे हम अंग्रेजों के जाने के बाद भी आजाद नही हो पाये हैं।
कहानी के अनुसार ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ अपने पति के साथ भारत के दौरे पर आने वाली है। इस खबर को पाकर सारे सरकारी अधिकारी उनके स्वागत की तैयारियों में व्यस्त हो जाते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली का कायाकल्प करने की तैयारी की जाती है, ताकि इंग्लैंड की महारानी का शानदार स्वागत किया जा सके। सड़कें चमकाईं जाती हैं, इमारतों का रंग-रोगन किया जाता है, साफ-सफाई की जाती है। ऐसे में अचानक पता चलता है कि दिल्ली के इंडिया के गेट के सामने लगी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक गायब है। इस पर सारे अधिकारी जनों में विचार-विमर्श होता है और सब चिंता में पड़ जाते हैं कि महारानी आएंगी और जॉर्ज पंचम की नाक देखेंगी तो क्या सोचेंगी। अंत में यह निर्णय लिया जाता है कि महारानी के आने से पहले ही जार्ज पंचम की मूर्ति पर एक नई नाक लगवा दी जाए। आनन-फानन में मूर्तिकार को बुलाया जाता है। फिर मूर्ति पर नई नाक लगाने की तैयारी शुरू हो जाती है। मूर्तिकार द्वारा बिल्कुल वैसा ही पत्थर लाने की मांग की जाती है। जिससे उस मूर्ति का निर्माण हुआ था पूरे भारत में वैसा पत्थर नहीं मिलता तो फिर यह तय किया जाता है कि किसी और मूर्ति की नाक लगा दी जाए। पूरे देश की मूर्तियों की नाक नापी जाती है, बड़े-बड़े नेताओं की मूर्ति की नाक नापी जाती है। परंतु सभी की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती है। अंत में बच्चों की मूर्तियों की नाक नापी जाती है पर उनकी नाक भी जार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती है। अंत में फैसला किया जाता है कि क्यों ना कोई असली नाक लगा दी जाए। 40 करोड़ भारतीयों में से किसी एक की नाक तो फिट आ ही जायेगी। खबर आई कि समस्या का समाधान हो गया है और मूर्ति पर नाक लगा दी गयी है। पर उस दिन इस खबर के अलावा कोई अन्य प्रमुख खबर अखबारों में नही छपी थी, सब तरफ सन्नाटा था, ऐसा लग रहा था कि जार्ज पंचम की नाक बचाने के चक्कर में देश की नाक कट गयी।