Kan kan ka adhikari saramsh
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कण - कण के अधिकारी पाठ का कवि डॉ. रामधारि सिंह दिनकर है ।
इनकी प्रसुस्त कविता में कहते है कि एक मनुज धन
को पाप के बल से संचित करता है । दूसरा मनुज
धन को भाग्यवाद के छाल से संचित करता है । नर -
समाज का भाग्य एक ही होता है । वह है , मानव का
परिश्रम और उसकी भुजाओं की शक्ति । श्रमिक के
सम्मुख सारी धरती और आसमान झुके है । हमें
श्रम - जल देनेवालों को पीछे नहीं छोड़ना चाहिए ।
अर्थात नर और सुर सब विनीत झुके है ।
विजीत प्रकृति में श्रमिक को सुख पाने देना
चाहिए । सबसे पहले सुख पाने का अधिकार
श्रमिकों को है । जो कुछ धन प्रकृति में न्यस्त है
वही मनुज मात्र का धन है । ओ ! धर्मराज उसका
कण - कण का अधिकारी ये प्रजा , मनुष्य है ।
ये सब बाते धर्मराज सुन रहे है । ये सब बाते
भीष्म पितामह धर्मराज से बोल रहे है ।
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