Hindi, asked by aastha12121, 1 year ago

"कर्म ही पूजा है " पर 100 से 150 शब्दो में paragraph in hindi


aastha12121: Baat hai
aastha12121: What you want to know
aastha12121: How
aastha12121: Ok

Answers

Answered by sofikulhussain001
8

                                                      कर्म ही धर्म है

जब हम कर्म(काम) और धर्म(पूजा) दोनों की एक साथ बात करते हैं, तो हमें इन दोनों शब्दों का सही अर्थ समझना बहुत जरुरी हो जाता है। कर्म का अर्थ है हमारे द्वारा किये गये प्रयास व हमारी उस कार्य के लिए की गई कड़ी मेहनत और धर्म का मतलब है कुछ कार्य शक्ति को श्रद्धा के साथ पूर्ण करना। अब इन दोनों शब्दों के अर्थ के बारे में जानने के लिए हम इस बात को समझते है कि किस प्रकार कर्म ही धर्म हो सकती है।जैसे जब हम अपने कर्म की इज्जत करते हैं या उस कार्य को पूरे मन लगाकर करते है तो वह कार्य सफल हो जाता है। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते है- कर्म ही पूजा है। भगवान ने हर इंसान को दो हाथ, एक मुंह और दो पैर के साथ धरती पर भेजा है। इसका मतलब है, कि भगवान भी हमसे कर्म करवाना चाहता है। हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कार्य करना अति आवश्यक है। जब कोई व्यक्ति ईमानदारी से काम करता है, तो उसे जीवन में सफलता मिलती है। जब वह आधे मन से कार्य करता है, तो वह असफल हो जाता है।

     जब तक हम प्रयास नहीं करेंगे, तब तक हम अपने सामने रखे भोजन को भी नहीं खा सकते हैं इसलिये जीवन कर्म के बिना अधूरा है। यह जीवन केवल तभी उपयोगी होता है जब तक हम सभी कार्य करते हैं। कार्य करना जीवन का मुख्य उद्देश्य है। आलस्य और सुस्तता जीवन के लिये अभिशाप के समान है। कर्म के बिना जीवन का कोई व्यक्तित्व नहीं है।

       सफल उद्योगपतियों ने काम के मूल्य को समझ लिया और अपने जीवन में अपने कर्म में खुद को समर्पित किया। निराशा और अवशोषण जीवन में अभिशाप के अलावा कुछ भी नहीं है। किस्मत भी बहादुर व्यक्ति का पक्ष लेती हैं। बहादुर व्यक्ति हमेशा प्रसिद्ध और पुरस्कृत होते हैं। विवेकानंद, स्वामी दयानंद और महात्मा गांधी सभी ने कर्म की वेदी पर ही बलिदान दिया और वे आज सभी प्रसिद्ध है। निश्चित रूप से उनके लिए कर्म ही पूजा थी। हमारे पहले प्रधानमंत्री, स्वर्गीय श्री पं. जवाहर लाल नेहरू कर्म ही धर्म है के पक्ष में थे।

        अब, हम इतना काम इसलिए करते है क्योंकि, कार्य का मतलब प्रयास है, और कर्म जीवन का सार है। मुझे लगता है कि अगर हम कर्म करते हैं तो हम जीवन के अमृत को पी रहे हैं। सभी प्रकार के आनंद, सभी उपलब्धि सभी प्रगति का मतलव केवल एक जादुई शब्द है ”कर्म” या ‘काम’।


aastha12121: Than
aastha12121: I mean thanks
sofikulhussain001: wellcom
Answered by AnitaShyara
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उत्तर⤵

मनुष्य तो भगवान की पूजा करता है यह तो ठीक है इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या कुछ मनुष्य यह जानते हैं कि "कर्म ही पूजा है" अब आप सोचेंगे कि कर्म ही पूजा कैसे हुआ? तो ईश्वर ने स्वयं कहा है कि अगर आप कर्म अच्छे करते हो तो आपको भगवान की पूजा करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अच्छे कर्म से बढ़कर कोई बड़ा पूजा नहीं होता हैI इस पूरे धरती पर सबसे बड़ा पूजा है अच्छे कर्म करना अगर आप अच्छे कर्म करते हो तो सबसे बड़ी पूजा करते होI इसलिए भगवान की पूजा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस समय आप अच्छे कर्म करते हो आपकी पूजा उसी समय होती है और जो लोग अच्छे कर्म नहीं करते हैं बुरे कर्म करते हैं अब वह पूजा भी करते हैं भगवान की पूजा भी करते हैंI तो उसका कोई अर्थ नहीं हुआ उन्हें फल नहीं मिलेगा उन्हें फल मिलेगा बुरे फल भी बुरा मिलेगाI वह दूसरों के साथ गलत करेंगे तो उनके साथ गलत होगाI अब आप अच्छे कर्म करो और पूजा ना करो तो यह भी मंजूर है क्योंकि पूजा तो आप उसी वक्त करते हो जब आप अच्छे कर्म करते हो और अगर आप अच्छे कर्म नहीं करते और लेकिन भगवान की पूजा करते हो तो आपकी पूजा का कोई अर्थ नहीं आपकी पूजा बेकार है अच्छे कर्म करो और अच्छे फल पाऊंI

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