"कर्म ही पूजा है" या "कर्म ही धर्म है"
पर निबंध
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कर्म ही पूजा है
काम वही है जो हम उसे होने के लिए बनाते हैं। हम सभी का काम समान है। फिर भी यह एक ऐसा रवैया है जिसके साथ काम करने से फर्क पड़ता है। यदि कोई काम और क्रोध के साथ काम करता है तो यह काम में दिखाता है। यदि काम पूरा हो जाता है, तो भी काम करने की प्रक्रिया के दौरान न तो खुशी होती और न ही काम को पूरा करने के लिए सुंदरता होती।
हमारे पास एक छात्र के रूप में काम करने के लिए है। हमें अध्ययन करने की आवश्यकता है। हमें स्कूल जाना है। असाइनमेंट और प्रोजेक्ट करने हैं। हम स्कूल में एक शैक्षणिक सत्र के दौरान विभिन्न पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों में भी भाग लेते हैं। यह सब हमारे काम का गठन करता है। यदि हम इसे गंभीरता से लेते हैं, तो हम शिक्षा प्रक्रिया का आनंद नहीं ले सकते हैं। अगर हमें जो करना है, उसमें खुशी है, तो उसे पूरा करना आसान हो जाता है। सीखना तब मज़ेदार होता है, न कि बोर या परेशानी।
जब हम पूजा में संलग्न होते हैं तो हमारे पास सम्मान, प्रेम, ईमानदारी, सादगी और सच्चाई की भावना होती है। पूजा में भक्ति, समर्पण और उत्कृष्टता की भावना भी है। अगर हम इन मूल्यों और इस तरह की भावना को अपने काम में ला सकते हैं, तो हम काम को पूजा में बदल देंगे।
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कर्म ही धर्म है निबंध-Work is Worship
जब हम कर्म(काम) और धर्म(पूजा) दोनों की एक साथ बात करते हैं, तो हमें इन दोनों शब्दों का सही अर्थ समझना बहुत जरुरी हो जाता है। कर्म का अर्थ है हमारे द्वारा किये गये प्रयास व हमारी उस कार्य के लिए की गई कड़ी मेहनत और धर्म का मतलब है कुछ कार्य शक्ति को श्रद्धा के साथ पूर्ण करना। अब इन दोनों शब्दों के अर्थ के बारे में जानने के लिए हम इस बात को समझते है कि किस प्रकार कर्म ही धर्म हो सकती है।
जैसे जब हम अपने कर्म की इज्जत करते हैं या उस कार्य को पूरे मन लगाकर करते है तो वह कार्य सफल हो जाता है। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते है- कर्म ही पूजा है। भगवान ने हर इंसान को दो हाथ, एक मुंह और दो पैर के साथ धरती पर भेजा है। इसका मतलब है, कि भगवान भी हमसे कर्म करवाना चाहता है। हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कार्य करना अति आवश्यक है। जब कोई व्यक्ति ईमानदारी से काम करता है, तो उसे जीवन में सफलतामिलती है। जब वह आधे मन से कार्य करता है, तो वह असफल हो जाता है।
जब तक हम प्रयास नहीं करेंगे, तब तक हम अपने सामने रखे भोजन को भी नहीं खा सकते हैं इसलिये जीवन कर्म के बिना अधूरा है। यह जीवन केवल तभी उपयोगी होता है जब तक हम सभी कार्य करते हैं। कार्य करना जीवन का मुख्य उद्देश्य है। आलस्य और सुस्तता जीवन के लिये अभिशाप के समान है। कर्म के बिना जीवन का कोई व्यक्तित्व नहीं है।
सफल उद्योगपतियों ने काम के मूल्य को समझ लिया और अपने जीवन में अपने कर्म में खुद को समर्पित किया। निराशा और अवशोषण जीवन में अभिशाप के अलावा कुछ भी नहीं है। किस्मत भी बहादुर व्यक्ति का पक्ष लेती हैं। बहादुर व्यक्ति हमेशा प्रसिद्ध और पुरस्कृत होते हैं। विवेकानंद, स्वामी दयानंद और महात्मा गांधी सभी ने कर्म की वेदी पर ही बलिदान दिया और वे आज सभी प्रसिद्ध है। निश्चित रूप से उनके लिए कर्म ही पूजा थी। हमारे पहले प्रधानमंत्री, स्वर्गीय श्री पं. जवाहर लाल नेहरू कर्म ही धर्म है के पक्ष में थे।
अब, हम इतना काम इसलिए करते है क्योंकि, कार्य का मतलब प्रयास है, और कर्म जीवन का सार है। मुझे लगता है कि अगर हम कर्म करते हैं तो हम जीवन के अमृत को पी रहे हैं। सभी प्रकार के आनंद, सभी उपलब्धि सभी प्रगति का मतलव केवल एक जादुई शब्द है ”कर्म” या ‘काम’।
जब हम किसी व्यक्ति, देश या समुदाय की प्रगति पर विचार करते हैं, तो यह संबंधित लोगों द्वारा किये गये कार्यों के साथ स्पष्ट रूप से मापा जा सकता है। 1947 में, विभाजन के बाद भारत में पंजाब के निवासियों को पंजाब में अपने घरों से पूरी तरह से बाहर निकाल दिया गया था और उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था और वे भारत के अन्य हिस्सों में भाग गये थे। आज हम सभी उन्हें भारत में सबसे सफल व्यवसायियों के रूप में देखते हैं। यह सब उनकी कड़ी मेहनत के कारण ही हुआ है तथा हम कह सकते है उनका कर्म ही उनकी पूजा थी।
सन 1945 में, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे और ज़मीन में समा गये थे, लेकिन आज वही पूरी तरीके से नष्ट जापान दुनिया का सबसे विकसित तकनीकी देश बन गया है। ऐसा क्यों है? जापान के लोगों की कड़ी मेहनत के कारण आज वह प्रगृति कर रहे हैं। इन दो उदाहरणों के साथ, हम सभी सहमत होंगे कि कड़ी मेहनत करके हम प्रगृति के रास्ते पर पहुँच सकते है।
कर्म करने का सबसे अच्छा तरीका कार्य का आनंद लेना है। जब हम कोई कार्य आनंद लेकर करते हैं, तो यह आसानी से एक सफल हो सकता है। यह तभी होता है जब हम किसी भी कार्य को बोझ समझकर नहीं करते है। जैसे ही काम बोझ बन जाता है, यह पूजा की पवित्रता को खो देता है और फिर इसकी गुणवत्ता भी गिरने लगती है। हमारा लक्ष्य होना चहिये कि काम को आनंद के साथ किया जाये। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके परिणाम क्या हो सकते है, तभी हम इष्टतम परिणाम प्राप्त पा सकते हैं। केवल तभी जब हम पूजा के रूप में काम करते हैं।
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By- Ri