कर्नाटक के दो (२) लेखकों के बारे में लिखिए 150 शब्द हर एक लेखक के।।।
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कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा
कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा (कन्नड़: ಕುಪ್ಪಳ್ಳಿ ವೆಂಕಟಪ್ಪಗೌಡ ಪುಟ್ಟಪ್ಪ एक कन्नड़ लेखक एवं कवि थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। ये कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले आठ व्यक्तियों में प्रथम थे।पुटप्पा ने सभी साहित्यिक कार्य उपनाम 'कुवेम्पु' से किये हैं। उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य श्रीरामायण दर्शनम् के लिये उन्हें सन् १९५५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया
काव्य
★अमलन कथॆ (शिशुसाहित्य) (१९२४)
★बॊम्मनहळ्ळिय किंदरिजोगि (शिशुसाहित्य) (१९२६)
★हाळूरु (१९२६)
★कॊळलु (१९३०)
★पाञ्चजन्य (१९३३)
★कलासुंदरि (१९३४]
पुरस्कार
★केंद्र साहित्य अकाडॆमि प्रशस्ति - (श्रीरामायण दर्शनं) (१९५५)
★पद्मभूषण (१९५८)
★मैसूरु विश्वविद्यानिलयदिंद गौरव डि.लिट्.
★'राष्ट्रकवि' पुरस्कार (१९६४)
★कर्नाटक विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्. (१९६६)
★ज्ञानपीठ प्रशस्ति (श्री रामायण दर्शनं) (१९६८)
★बॆंगळूरु विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्. (१९६९)
★पद्मविभूषण (१९८९)
दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे
दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे (31 जनवरी 1896 – 26 अक्टूबर 1981) एक कन्नड साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह अरलु–मरलु के लिये उन्हें सन् १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] इन्हें १९७३ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सन्मान
★साहित्य अकादमी पुरस्कार - इ.स. १९६५
★पद्मश्री पुरस्कार - इ.स. १९६८
★ज्ञानपीठ पुरस्कार - इ.स. १९७४
★न.चिं .केळकर पुरस्कार