करिश्यन्ति- वचन लिखत
O एक वचन
O द्विवचन
बहुवचन
Answers
संस्कृत व्याकरण
सिद्धान्तकौमुदीवैयाकरणवेदांग
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संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग'
यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च।
यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥
- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है ; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। ऐसे मैं व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ?
(ध्यान दें कि किसी पद के अन्त में 'स्य' लगने मात्र से वह षष्टी विभक्ति का नहीं हो जाता, और न ही 'आय' लगने से चतुर्थी विभक्ति का । विहस्य और विहाय ये दोनों अव्यय हैं, इनके रूप नहीं चलते। इसी तरह 'अहम्' और 'कथम्' में अन्त में 'म्' होने से वे द्वितीया विभक्ति के नहीं हो गये। अहम् यद्यपि म्-में अन्त होता है फिर भी वह प्रथमपुरुष-एकवचन का रूप है। इस सामान्य बात को भी जो नहीं समझता है, उसकी पत्नी कैसे बन सकती हूँ? अल्प ज्ञानी लोग ऐसी गलती प्रायः कर देते हैं। यह भी ध्यान दें कि उन दिनों में लडकियां इतनी पढी-लिखी थीं वे मूर्ख से विवाह करना नहीं चाहती थीं और वे अपने विचार रखने के लिए स्वतन्त्र थीं।)
वचन
संस्कृत में तीन वचन होते हैं- एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन।
संख्या में एक होने पर एकवचन का, दो होने पर द्विवचन का तथा दो से अधिक होने पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- एक वचन -- एकः बालक: क्रीडति।
द्विवचन -- द्वौ बालकौ क्रीडतः।
बहुवचन -- त्रयःबालकाः क्रीडन्ति।
लिंग
पुल्लिंग- जिस शब्द में पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुलिंग कहते हैं।(जैसे रामः, बालकः, सः आदि)
स: बालकः अस्ति।
तौ बालकौ स्तः
ते बालकाः सन्ति।
स्त्रीलिंग- जिस शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। (जैसे रमा, बालिका, सा आदि)
सा बालिका अस्ति।
ते बालिके स्तः।
ताः बालिकाःसन्ति।
नपुंसकलिंग (जैसे: फलम् , गृहम, पुस्तकम , तत् आदि)
पुरुष
प्रथम पुरुष (First person) - स:, तौ, ते
मध्यम पुरुष (Second person) - त्वम्, युवाम्, यूयम्
उत्तम पुरुष (Third person) - अहं, आवाम्, वयम्
कारक
कारक नाम - वाक्य के अन्दर उपस्थित पहचान-चिह्न
कर्ता - ने (रामः गच्छति।)
कर्म - को (to) (बालकः विद्यालयं गच्छति।)
करण - से (by), द्वारा (सः हस्तेन खादति।)
सम्प्रदान -को के लिये (for) (निर्धनाय धनं देयं।)
अपादान - से (from) अलगाव (वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।)
सम्बन्ध - का, की, के (of), रा, री, रे, ना, नी, ने, ( रामः दशरथस्य पुत्रः आसीत्। )
अधिकरण - में, पे, पर (in/on) (यस्य गृहे माता नास्ति,)
सम्बोधन - हे,भो,अरे, (हे राजन् ! अहं निर्दोषः।)
वाच्य
संस्कृत में तीन वाच्य होते हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
कर्तृवाच्य में कर्तापद प्रथमा विभक्ति का होता है। छात्रः श्लोकं
(३) लुट् लकार (= अनद्यतन भविष्यत् काल) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । जैसे :-- सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । ( वह परसों विद्यालय जायेगा ।)
(४) लृट् लकार (= सामान्य भविष्य काल) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो । जैसे :--- रामः इदं कार्यं करिष्यति । (राम यह कार्य करेगा।)
(५) लेट् लकार (= यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है।)
(६) लोट् लकार (= ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।) जैसे :- भवान् गच्छतु । (आप जाइए ) ; सः क्रीडतु । (वह खेले) ; त्वं खाद । (तुम खाओ ) ; किमहं वदानि । (क्या मैं बोलूँ ?)
(७) लङ् लकार (= अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । जैसे :- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । (आपने उस दिन भोजन पकाया था।)
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् (= किसी को आशीर्वाद देना हो) जैसे :- भवान् जीव्यात् (आप जीओ ) ; त्वं सुखी भूयात् । (तुम सुखी रहो।)
(ख) विधिलिङ् (= किसी को विधि बतानी हो ।) जैसे :- भवान् पठेत् । (आपको पढ़ना चाहिए।) ; अहं गच्छेयम् । (मुझे जाना चाहिए ऋ ए ओ ) जोड़ दें और