करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान पर निबंध | Write an essay on Practice Makes us Perfect in Hindi
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करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान ।।
जिस प्रकार बार-बार रस्सी के आने जाने से कठोर पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने पर मूर्ख व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है ।
सारांश यह है कि निरन्तर अभ्यास कम कुशल और कुशल व्यक्ति को पूर्णतया पारंगत बना देता है । अभ्यास की आवश्यकता शारीरिक और मानसिक दोनों कार्यों में समान रूप से पड़ती है । लुहार, बढ़ई, सुनार, दर्जी, धोबी आदि का अभ्यास साध्य है । ये कलाएं बार-बार अभ्यास करने से ही सीखी जा सकती हैं ।
दर्जी का बालक पहले ही दिन बढिया कोट-पैंट नहीं सिल सकता । इसी प्रकार कोई भी मैकेनिक इंजीनियर भी अभ्यास के द्वारा ही अपने कार्य में निपुणता प्राप्त करता है । विद्या प्राप्ति के विषय में भी यही बात सत्य हैं । डॉ. को रोगों के लक्षण और दवाओं के नाम रटने पड़ते हैं ।
वकील को कानून की धाराएं रटनी पड़ती हैं । इसी प्रकार मंत्र रटने के बाद ही ब्राह्मण हवन यज्ञ आदि करा पाते हैं । जिस प्रकार रखे हुए शस्त्र की धार को जंग खा जाती है उसी प्रकार अभ्यास के अभाव में मनुष्य का ज्ञान कुंठित हो जाता है और विद्या नष्ट हो जाती है ।
इसी बात के अनेक उदाहरण हैं कि अभ्यास के बल पर मनुष्यों ने विशेष सफलता पाई । एकलव्य ने गुरुके अभाव में धनुर्विद्यसा में अद्भुत योग्यता प्राप्त की । कालिदास वज्र मूर्ख थे परन्तु अध्यास के बल पर संस्कृत के महान् कवियों की श्रेणी में विराजमान हुए । वाल्मीकि डाकू से ‘आदि-कवि’ बने । अब्राहिम लिंकन अनेक चुनाव हारने के बाद अन्ततोगत्वा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने में सफल हुए।
यह तो स्पष्ट हो ही चुका है कि अध्यास सफलता की कुंजी हैं । परन्तु अभ्यास के कुछ नियम हैं । अभ्यास निरन्तर नियमपूर्वक और समय सीमा में होना चाहिए । यदि एक पहलवान एक दिन में एक हजार दण्ड निकाले और दस दिन तक एक भी दण्ड न निकाले तो इससे कोई लाभ नहीं होगा । अभ्यास निरन्तरता के साथ-साथ धैर्य भी चाहता है ।
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान”
लगातार अभ्यास करने से जो जड़मति है, वो भी सुजान बन जाता है। पानी के लगातार वहने से बड़ी-बड़ी चट्टानों में से होता हुआ अपना रास्ता स्वयं बना लेता है। जिस प्रकार कुएँ पर कोमल रस्सी को बार-बार खींचने से पत्थर पर निशान पड़ जाते हैं। निरंतर अभ्यास के द्वारा सफलता पाई जा सकती है। जो सुजान हैं, वह कुशल बन जाते हैं, जो कुशल हैं, वे अपनी कला में पूर्ण बन जाते हैं, तथा जो पूर्ण है उनकी पूर्णत स्थिर रहती है।
काम को बार बार करने से अभ्यास करने वाले व्यक्ति का हाथ सध जाता है, उसके अंगों में स्फूर्ति आती है, वह वस्तु के सूक्ष्म गुण और दोषों को पहचान सकता है। निरंतर अभ्यास करने से साधक के गुणों में वृद्धि होती है। निरंतर अभ्यास करने से कल जो व्यक्ति जड़मति था, आज अपनी कला का विशेषज्ञ बन जाता है। विशेषज्ञ व्यक्ति को इस संसार में सम्मान दिया जाता है।
अभ्यास केवल व्यक्तिगत वस्तु ही नहीं यह एक सामूहिक वरदान भी है। देश की उन्नति का भी यही मूल मंत्र है और समाज सुधार का भी। देश के विकास के लिए एक व्यक्ति का नहीं समूचे राष्ट्र का अभ्यास चाहिए । श्रम के विकास के लिए एक व्यक्ति का नहीं समूचे राष्ट्र का विकास चाहिए, श्रम एक दिन का नहीं अपितु वर्षों का।
शीघ्रता जल्दबाजी या उतावलापन अभ्यास का सबसे बड़ा शत्रु है । आज बीज बोकर कल फसल नहीं काटी जा सकती। मीठा फल पाने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। अभ्यास करते हुए "सहज पके' सो मीठा होय" को नहीं भूलना चाहिए।
अभ्यास अच्छा होता है, बुरा भी। अगर अच्छे अभ्यास की आदत पड़ गई तो जीवन संवर जाएगा। यदि बुरे अभ्यास की आदत पड़ गई, तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा। इसलिए हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हम बुरे अभ्यास से बचें । हम सुजान से जड़मति ना बने अपितु जड़मति से सुजान बने।