करत-करत अभ्यास के , जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निसान ||
alankaar ka prakaar bataye !
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करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान । रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान ॥ ” कुंए की जगत के पत्थर पर बार बार रस्सी के आने-जाने की रगड से निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार लगातार अभ्यास से अल्पबुद्धि/जडमति भी बुद्धिमान/ सुजान बन सकता है। यह दोहा कवि वृन्द जी की 'वृंद-सतसई' से है.
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अनुप्रास अलंकार
Explanation:
क वर्ण - करत - करत
प वर्ण - पार , पड़त
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