‘करत करत अभ्यास के िड़मनत होत सुिान’ pe nibandh
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सूक्ति का अर्थ ० प्रकृति से उदाहरण
सूक्ति का अर्थ ० प्रकृति से उदाहरण • अभ्यास का महत्त्व ० इतिहास से उदाहरण
निरंतर अभ्यास से मूर्ख ज्ञानी बन जाता है, अनाड़ी समझदार, चतुर, कुशल, सिद्ध, प्रवीण तथा सुविज्ञ बन जाता है। जैसे बार-बार रस्सी के आने-जाने से कुएँ की कठोर शिला पर भी निशान पड़ जाते हैं और पाषाण घिसकर चूर्ण में परिवर्तित हो जाता है। जो कलाकार हैं वे महानता को वरते हैं तथा सिदध पुरुष बनकर गरुत्व की दीप्ति के चमक उठते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। कोई भी व्यक्ति जन्म से प्रतिभाशाली नहीं होता। सतत् अभ्यास से जो व्यक्ति अंतः शक्तियों को विकसित कर लेता है, वही महानता का वरण करता है।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान।।
संसार में जितने भी महान विचारक एवं सफल व्यक्ति हुए हैं, उनकी सफलता का रहस्य उनके अभ्यास में निहित रहा है। जिन लेखका, विचारकों का हम आदर करते हैं, निष्ठा के साथ पढ़ते हैं तथा जिनसे मानवता उत्पन्न हुई है, उन्होंने अपनी रचनाओं को निखारने के लिए बार-बार अभ्यास किया है। बार-बार लिखा, काटा और फिर लिखा । प्लेटे ने अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ के प्रथम वाक्य को नौ प्रकार से लिखा तब कहीं जाकर उस वाक्य को अंतिम रूप प्रदान कर सके।
गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में।
गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में।वे क्या कभी गिरे हैं, जो घुटनों के बल चले।
अभ्यास कभी निरर्थक नहीं जाता। महाकवि कालिदास अत्यंत मूर्ख थे, किंतु अभ्यास ने उन्हें महान कवि एवं लेखक बना दिया। महर्षि वाल्मीकि व्याध से महाकवि बने, इसके पीछे उनकी कठोर साधना ही थी। प्राचीन काल में लोग तप किया करते थे। यह तप भी अभ्यास का ही एक रूप था। रावण ने घोर तपस्या करके ब्रहमा से वरदान प्राप्त किया था। अर्जुन ने कठिन तपस्या करके देवराज इंद्र से अमोघास्त्र प्राप्त किया तथा अभ्यास एवं कठिन साधना के बल पर भीष्म पितामह ने मृत्यु को भी अपना दास बना लिया।
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