Hindi, asked by nareshpaswan9873, 9 months ago

Karl Marx ke anusar Rajniti ka kya Arth hai​

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Answered by harshal9860293159
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कार्ल मार्क्स उन लेखकों में से था, जिनकी प्रतिष्ठा समय के साथ–साथ निरंतर परवान चढ़ती जाती है. जिन दिनों वह युवा था, फ्रांस में प्रूधों के विचारों का बोलबाला था. उस समय के अधिकांश बुद्धिजीवी और सामाजिक–राजनीतिक आंदोलन प्रूधों के ‘अराजकतावाद’ से प्रभावित थे. सामंतवाद और साम्राज्यवाद का उत्पीड़न झेल चुके लोगों द्वारा शासकविहीन राज्य की परिकल्पना की जा रही थी. हालांकि यह कोई अभिनव अभिकल्पना नहीं थी. ढाई हजार वर्ष पहले प्लेटो ऐसा ही सपना देख चुका था. प्राचीन भारत की वैराज्य की अवधारणा भी अराजकता से मिलती–जुलती थी. तो भी नया न होने के बावजूद, अराजकतावाद एक लुभावनी परिकल्पना थी, जिसको लेकर वुद्धिजीवियों के एक वर्ग में खासा उत्साह था. अराजकतावाद का प्रवर्त्तक प्रूधों खुद भी विलक्षण मेधा का स्वामी था. ‘संपत्ति चोरी है, व्यक्तिगत संपत्तिधारक चोर है…’ जैसे नारों से उसने पूंजीपतियों की खुलकर आलोचना की थी, जिसको बुद्धिजीवियों और आम जनता का खूब समर्थन मिला. प्रूधों के जीवनकाल में ही उसके समर्थकों और प्रशंसकों का बड़ा वर्ग था, वह स्वयं प्रखर विचारक था, इसलिए उसके जीवनकाल में मार्क्स को उतना महत्त्व नहीं मिल सका.

सच तो यह है कि वे मार्क्स की तैयारी, ज्ञान और जीवनानुभव बटोरने के दिन थे. वह आरंभ से ही गजब का पढ़ाकू था. युवावस्था में ही उसने प्राचीन यूनानी दार्शनिकों के साथ–साथ आधुनिकतम दर्शनशास्त्रियों जिनमें कांट, देकार्त, जा॓न लाक, स्पिनोजा, लाइबिनित्ज, डेविड ह्यूम, हीगेल, फायरबाख, बायर आदि प्रमुख थे, का गहरा अध्ययन किया था. मगर उसको सर्वाधिक प्रभावित किया था, हीगेल के द्वंद्ववाद ने. अपने प्रसिद्ध दार्शनिक सिद्धांत में हीगेल ने सृष्टि के विकास को शुभ और अशुभ के शाश्वत द्वंद्व के माध्यम से समझाने का प्रयास किया था. उसने इन्हें परस्पर विरोधी शक्तियां मानते हुए दोनों के अनिवार्य संघर्ष की ओर संकेत किया था. हीगेल परम आस्थावादी था. उसका विश्वास था कि हर वस्तु स्वाभाविक रूप से परम की ओर अग्रसर है. इस कारण उसका अवरोधक शक्तियों से, जो अपनी अज्ञानता के आधार पर उसका विरोध करती हैं, संघर्ष अपरिहार्य है. हीगेल के अनुसार अज्ञानता का मूल ऐंद्रियक ज्ञान की अपूर्णता में निहित है. हीगेल का विचार था कि मानवेंद्रियों द्वारा उपलब्ध ज्ञान अपूर्ण होता है. पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना मानवेंद्रियों के सामथ्र्य से बाहर है. विरोधी शक्तियों के संघर्ष की कल्पना पश्चिमी दर्शन के लिए यद्यपि नई नहीं थी. बाइबिल पहले से ही पाप और पुण्य के शाश्वत संघर्ष की ओर संकेत कर चुकी थी. स्वर्ग से आदम का निष्कासन भी इसी संघर्ष की परिणति था.

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