कस्य अविस्करेण कल्पनातीत:
विकास दृश्यते ?
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पियाजे का सिद्धान्त
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को मुख्य रूप से चार कालों (stages) में विभाजित किया-
संवेदी पेशीय अवस्था (Sensory Motor stage)
प्राकसंक्रियात्मक अवस्था (Pre operational stage)
मूर्त संक्रिया अवस्था (concrete operational stage)
औपचारिक संक्रिया (Formal operational stage)
संवेदीपेशीय:- जन्म से 2 वर्ष तक बालक का संज्ञानात्मक विकास निम्न रूप से होता है। इस आयु के बच्चे अपनी इन्द्रियों द्वारा प्राथमिक अनुभव करते हैं। इस अवस्था को पियाजे ने छः उप अवस्थाओं में बाँटा-
1.सहज क्रियाओं की अवस्था (stage of reflex activities) यह अवस्था जन्म से 30 दिन तक होती है। इसमें शिशु केवल सहज क्रिया करता है। इनमें वस्तु को लेकर मुह में लेकर चूसने की क्रिया सबसे अधिक प्रबल है।
2.प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था (Stage of Circular Reaction Primary) 1 माह से 4 माह के बच्चों की सहज क्रियाएं कुछ सीमा तक उनकी अनुभूतियों के आधार पर परिवर्तित होती है, दाहेराई जाती है आरै समन्वित हातेी है।
3.गौण वृत्तीय अनुक्रियाआंे की अवस्था (stage of secondary circular Activities) यह अवस्था 4 माह से 6 माह की होती है। इस अवस्था में बच्चे वस्तुओं को स्पर्श करने व इधर-उधर करने की अनुक्रियाएं करते हैं। वे ऐसी भी अनुक्रियाएं करते हैं, जिनसे उन्हें सुख मिलता है।
4.गौड़ स्कीमेटा के समन्वय की अवस्था (Stage of co-ordination of secondary schemata) यह अवस्था 8 से 12 माह तक की अवस्था है। इस अवस्था में शिशु उद्देश्य और उसको प्राप्त करने के साधन में अन्तर करने लगते हैं व बड़ोका अनुकरण करने लगते हैं।
5.तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था (Stage of Tertiary circular Activities) यह अवस्था 12 से 18 माह की होती है। इसमें बच्चे वस्तुओं के गुणों को प्रयत्न व भूल द्वारा सीखते हैं व जानते हैं।
6.मानसिक संयोग द्वारा नये साधनों के खाजे की अवस्था (Stage of invention of new Means through mental co-ordination) यह अवस्था 18 से 24 माह की अवस्था है। इस अवस्था देखी हुई वस्तु की अनुपस्थिति में भी उसके अस्तित्व को समझने लगते हैं।
प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (Properational Stage) -पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की दृष्टि से 2-7 वर्ष की अवस्था इन्होंने दो उप अवस्थाओ में बांटा है-
प्राक्संक्रियात्मक (Properational period) -यह अवधि 2 से 4 वर्ष की होती है। इस अवस्था में बच्चे अपने इधर उधर की वस्तुओं, प्राणियों व शब्दों में सम्बन्ध स्थापित करने लगते हैं। ये सब अनुकरण व खेल द्वारा होता है।
पियाजे के अनुसार 4 वर्ष तक की अवस्था के बच्चे सभी निर्जीव वस्तुओं को सजीव के रूप में लेते हैं।
दूसरे बच्चे अपने विचारों को सही मानते हैं और ऐसा समझते हैं कि दुनिया उनके इर्द-गिर्द .
Make it short yourself