कठपुतली क्रोध से क्या–क्या कहती है ?
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भावार्थ: कवि ने यहााँ एक कठपुतली के मन के भािों को दशाथया है। जो कठपुतली दूसरों के इशारों पर नाचते-नाचते परेशान हो गयी है, और अब िो सारे धागे तोड़कर स्वतंत्र होना चाहती है। िो गुस्से में कह उठती है वक मेरे आगे-पीछे बंधे ये सभी धागे तोड़ दो और अब मुझे मेरे पैरों पर छोड़ दो।
Explanation:
पहली कठपुतली के मन में क्या इच्छा जगी थी, वह कितनी स्वाभाविक थी? Answer: पहली कठपुतली सोचने लगी कि उसके कारण सभी विद्रोह के लिए तैयार हो गई हैं, अत: अब उसके कंधों पर स्वतंत्रता की जिम्मेदारी बढ़ गई है। ... Answer: मन के छंद छूने का अर्थ है-अपनी मन मर्जी से काम करना।
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