kathavastu of bade ghar ki beti
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आनंदी एक बड़े घर की बेटी है जो मध्यम वर्गीय परिवार में ब्याही जाती है. पीहर में सब तरह के ऐशों आराम और सुख सुविधाओं के बीच पली आनंदी को यह पता ही नही होता कि एक माध्यम आमदनी वाले परिवार का खर्च कैसे चलता है. घर में सास नहीं है, केवल ससुर पति तथा एक देवर के होने के कारण रसोई व गृहस्थी की साड़ी जिम्मेदारियां उसी के ऊपर आ जाती हैं. किफायत ना जानने वाली आनंदी जब महीने भर का घी कुछ ही दिनों में ख़तम कर देती है तो एक दिन उसका देवर गुस्से से भड़क उठता है और दोनों में कहा सुनी हो जाती है. पति को यह बात पता चलने पर वह छोटे भाई पर बहुत नाराज़ होता है और उसे घर से निकल जाने के लिए कहता है. हालांकि देवर की शिकायत करते वक़्त आनंदी काफी गुस्से में होती है लेकिन वह यह नहीं जानती कि बात इतनी भी बढ़ सकती है. परिवार का विघटन तो वह किसी भी सूरत में चाहती ही नहीं. अतः लाख कोशिशों और मिन्नतों के बाद जैसे तैसे पति का गुस्सा शांत करने में सफल होती है और परिवार को टूटने से बचा लेती है. पूरा गाँव यही कहकार उसकी तारीफ़ करता है कि बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं. बिगड़ी बात को भी सुधार देती हैं.
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