कवि के अनुसार बकरी में सुंदरता कब प्रकट होती है।
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chapter paro bro mil jayega
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उमरावनगर में कुछ दिन
बकरी, मुर्गी, और फटी कमीजें
बस में जहाँ मैं बैठा था, वहाँ बकरी न थी; मेरे पास बैठे आदमी की गोद में सिर्फ मुर्गी थी। बकरियाँ पीछे थी। उस भीड़-भक्कड़ में अगर कहीं कोई बकरी का बच्चा आदमी की गोद में था या कोई बकरी आदमी के गोद में घुटने पर थी तो कुछ ऐसे आदमी थे जिनके पाँव बकरी के पेट के नीचे या पीठ के ऊपर थे और पीठ बस की पिछ्ली दीवार से चिपकी थी। उनके सिर कहाँ थे, कहना मुश्किल है क्योंकि उनसे हाथ-दो-हाथ ऊपर भी कई सिर दिख रहे थे।
बस के रुकने पर समझने में देर नहीं लगी कि यहाँ उतरने में, चढ़ने के मुकाबले ज्यादा जीवट की जरूरत होगी। पर मेरा मुर्गीवाला साथी मुझसे ज्यादा उतावला था। अभिमन्यु की तरह भीड़ का चक्रव्यूह तोड़ता हुआ जब वह आगे बढ़ा तो मैं भी उसके कुर्ते से झूलता हुआ वहाँ तक पहुँच गया जहाँ दरवाजा होना चाहिए और उसके नीचे कूदते ही मैं भी उसी के साथ जमीन पर चू पड़ा। मेरे हाथ से झूलती अटैची किसी की टाँगो में फँसी होगी क्योंकि मेरे पीछे जो मुसाफिर कंधे के बल जमीन पर आया, उसकी टाँग आसमान में थी और दूसरी की धोती मेरी अटैची के कुंडे से उलझी थी। मेरे मुर्गी वाले साथी का कुर्ता पीछे से चीथड़ा बन चुका था पर वह इससे बिलकुल बेखबर था। उसे देख कर मुझे खबर हुई कि मैं भी अपनी कमीज के मामले में बेखबर हूँ, उसका कंधा अपनी सीलन छोड़ कर पीठ पर झूल गया था।
सड़क पर जहाँ बस रुकी थी उसके किनारे एक दवाखाना था जिस पर किन्हीं डा. अंसारी का नाम लिखा था। विज्ञापन-पट्टी पर ए.ए.यू.पी., पी.यम.पी., यम.डी. जैसी डिग्रियाँ लिखी थीं। यम.डी. से मेरा मन मुदित हो गया क्योंकि यह डॉक्टरों के खिलाफ इस इलजाम का जवाब था कि ऊँची डिग्री लेने के बाद वे शहर छोड़ कर देहात नहीं जाना चाहते। पर पट्टी पर दुबारा निगाह पड़ते ही मैंने देखा, यम.डी. के नीचे कोष्ठकों के भीतर उर्दू, यानी फारसी लिपि में लिखा है, 'मैनेजिंग डायरेक्टर, अंसारी क्लिनीक'। यह तो हुआ यम.डी.। अब मैंने ए.ए.यू.पी. और पी.यम.पी. के तिलिस्म को तोड़ना चाहा। पी.यम.पी. का गुर आसान था : प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर। ए.ए.यू.पी. का गुर दूसरे दिन पकड़ में आया।
दवाखाने में एक ऊँघता हुआ बुड्ढा, हजारों मक्खियाँ। उसके सामने, सड़क के किनारे दो तख्तों पर छ:-सात लोग भिन्न-भिन्न आसनों में बैठे बात करते हुए; पर एक भी आसन ऐसा नहीं जिससे जल्दी उठने का आभास हो रहा हो। जहाँ तक बात की बात है, बात सिर्फ एक आदमी कर रहा था, बाकी सिर्फ उसकी बात सुन रहे थे।