कवि कागज स्याही और कलम किसे बनाना चाहते हैं और क्यों ?
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काग़ज़ कलम एवं कविता
स्याही कलम से,काग़ज़ के पन्नों पर,
सोच सोच कर लिखता था हर शब्द,
डर लगता था, ग़लत न लिख जायें,
गलती भी अजर हो जाते हैं पन्नों पर,
जब तक काग़ज़ चिथड़े ना हो जातें।
जब मन किया, बहलाता है कविता,
ग़लती भी हो गयी हो ,कभी अगर,
सीखता रहता था, पढ़कर उनको,
बरसों तक सँभाले रखता उनको,
उम्मीद बनाये कि लोग पढ़ेगें उसे,
पढ़ा भी लोगों ने, समय समय पर।
कविता पुरानी हो गयी,बढ़ते समय से,
ध्यान से पढ़ता हूँ , फट ना जायें पन्ने,
धूमिल पड़ गयी,पन्नों की स्याही भी,
चश्मा लग गया, आँखों पर भी मोटा,
फिर भी मशक़्क़त कर आँखों से,
पढ़ता हूँ,क्योंकि वही दोस्त है मेरा।
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