कवि ने बच्चों की दयनीय दशा का जिम्मेदार किसे माना है
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बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता में सामाजिक सरोकारों का महत्त्व देते हुए बच्चों के काम पर जाने की पीड़ा को कवि ने बड़े ही मर्मस्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है। यह बच्चों के खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र है पर सामाजिक विषमता ने उनकी शिक्षा, खेलकूद और भविष्य के अच्छे अवसर को उनसे छीन लिया है। बच्चों को यूँ काम पर जाने को किसी भूकंप के समान भयावह कहा गया है। वास्तव में इसमें कवि समाज की संवेदनहीनता पर व्यंग्य कर रहा है। समाज इन बच्चों को काम पर जाता देखकर भी चिंतित नहीं होता क्योंकि इसमें उनका बच्चा नहीं होता है और दूसरे बच्चे से उन्हें कोई लेना-देना नहीं। वे केवल मूक बनकर सब कुछ देखते रहते हैं क्योंकि ये उनके लिए बड़ी सामान्य बात है।
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