कवि सूर्य की विजय से भी प्रसन्न क्यों नहीं हो पाता
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Explanation:
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Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न आ रही ‘रवि की सवारी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके कवि हरिवंशराय बच्चन हैं। यहाँ पर कवि ने सूर्योदय के दृश्य का चित्रण किया है।रात के अँधेरे के बाद जब सूर्य का प्रकाश धरती पर पड़ता है तो आकाश से लेकर धरती तक दृश्य बड़ा ही आकर्षक होता है। सूर्य की किरणें चारों और फैलने लगती है सारी प्रकृति सूर्य के इस आगमन का अपने-अपने ढंग से स्वागत करने लगते हैं।इस प्रकार कवि ने यहाँ पर प्रकृति की परिवर्तनशीलता के अटल सत्य को चित्रित किया है।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न आ रही ‘रवि की सवारी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके कवि हरिवंशराय बच्चन हैं। यहाँ पर कवि ने सूर्य के आगमन का मनोहारी वर्णन किया है।जब सूर्योदय होता है तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्य अपने नव किरणों के रथ पर सवार होकर चला आ रहा है। कली और पुष्पों से पूरा रास्ता सजाया गया है। बादल मानो सूर्य के स्वागत के लिए रंगीन पोशाक पहन कर खड़े हों।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न आ रही ‘रवि की सवारी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके कवि हरिवंशराय बच्चन हैं। यहाँ पर कवि ने सूर्य की प्रशंसा का वर्णन किया है। प्रातकाल:जब सूर्य का उदय होता है तो रात के अंधकार से सभी को मुक्ति मिलती है ऐसा महसूस होता है जैसे कोई राजा अपने स्वर्ण रथ पर सवार होकर विजयी होकर आया हो और अपने राजा को देखकर उसकेपक्षीरूपी चारण और बंदीगण उसकी प्रशंसा में कीर्ति के गीत गा रहे हो।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न आ रही ‘रवि की सवारी’ नामक कविता से लिया गया है जिसके कवि हरिवंशराय बच्चन हैं। यहाँ पर कवि ने सूर्य के प्रतीक के माध्यम से समय की परिवर्तनशीलता को दर्शाया है।कवि कहते हैं कि परिवर्तन इस संसार का अटल सत्य है। जिस प्रकार रात के स्याह अँधेरे को सूर्य अपनी किरणों से दूर कर देता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी सुख और दुःख का चक्र चलता रहता है। अत:मनुष्य को आने वाली हर परिस्थिति के लिए तैयार रहने में ही समझदारी है।