कवि स्वयं को दास क्यों कहता है ?
Please tell. It's from the chapter of रैदास के पद
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कवि स्वयं को दास क्यों कहता है ?
कवि स्वयं को दास कहा है , और प्रभु को दीन- दयालु और सबकी रक्षा करने वाला कहा है |
संत रैदास जी कहते है की मेरे मन में राम नाम की जो रट लगी है , अब वह नहीं छूट सकती| हे प्रभु आप चन्दन है और मैं पानी , जिसकी सुगंध मेरे अंग-अंग में समा गई है| प्रभु आप इस उपवन के वैभव है और मैं मोर| मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई जैसे चकोर चन्द्रमा की तरफ़ देखता रहता है | उसकी प्रकार मेरा मन भी आप के ऊपर लगा रहता है| आप से अलग रहकर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है |
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