कवि स्वयं को धागा क्यों मानता है
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कवि स्वयं को धागा इसीलिए मानता है क्योंकि जैसे मोती और धागा साथ रहता है वैसे वह अपने गुरु के साथ रहना चाहता है।
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कवी स्वयं को धागा इसलिये मानते है क्योंकि ईश्वर तो मोती जैसे महान है और भक्त तो एक पिरोया हुआ धागा है जो सदा अपने गुरु के साथ रहना चाहता है
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