कवि सजीते सावान से क्या प्रार्थना करता है
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कवि सजीले सावन को अपना संदेशवाहक बनाता है और उससे प्रार्थना करता है कि वह चाहे कितना भी बरस ले किन्तु उसके पिता के मर्म को दुखी न करे। वह पिता को जाकर बताए कि भवानी जेल में मस्त है।
Explanation:
भवानी प्रसाद मिश्र आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं. वे एक प्रसिद्ध कवि एवं गांधी विचारक थे. गांधी दर्शन का प्रभाव उनकी कविताओं में साफ देखा जा सकता है.
"हे सजीले हरे सावन, हे कि मेरे पुण्य पावन, तुम बरस लो वे न बरसें, पाँचवे को वे न तरसें, मैं मजे में हूँ सही है, घर नहीं हूँ बस यही है, किंतु यह बस बड़ा बस है,"
प्रसंग-प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता 'घर की याद' के 'पिता, शीर्षक से अवतरित हैं। न पक्तियों में कवि सावन से कहता है कि तुम तो खूब बरसो, पर मेरे पिता की अमअश्रुधारा बरसे-
व्याख्या-हे सजीले हरे-भरे सावन! हे पुण्यशाली! हे परमपावन! तुम चाहे कितना ही बरस लो, जी भरकर बरस लो, परन्तु मेरे पिता के पास जाकर कोई ऐसा संदेश मत देना कि वे मेरे अभाव में अश्रुधारा बरसाएँ और अपनै पाँचवें बेटे भवानी के लिए न तरसें। मैं यहाँ जेल में हूँ यह बात ठीक है, परन्तु मैं यहाँ बिल्कुल ठीक हूँ। अन्तर इतना है कि मैं घर पर पिता जी के पास नहीं हूँ, इसी बेबसी ने सारे परिवार को आनंदहीन और नीरस कर रखा है। मेरे अभाव में घर के सारे परिवारी-जन दुखी हैं।
विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छन्दमुक्त कविता का प्रयोग किया है। तत्सम, तद्भव शब्दावली युक्त भाषा मुहावरों से परिपूर्ण है। 'पुण्य-पावन' में अनुप्रास अलंकार है। सावन को सन्देशवाहक बनाकर भेजा गया है। यमक अलंकार का भी प्रयोग है। भाषा सरल और जनसाधारण के योग्य है। कवि सावन से तो बरसने को कहता है परन्तु पिताजी की अश्रुधारा बरसने पर चिन्तित है। वह संदेश भेजता है कि उनका पाँचवाँ पुत्र भवानी जेल में स्वस्थ और सानन्द है। बस, घर पर नहीं है, इसी बात
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