कविता
है और कहाँ संधि
भक्ति-पद
प्र
स्तुत भक्ति-पद 'सूरसागर' से उद्धृत हैं। प्रथम पद में सूरदास ने अपने एकमात्र
उपास्य देव श्रीकृष्ण की स्तुति की है। दूसरी पदावली उद्धव-गोपी संवाद है
जिसमें गोपियाँ उद्धव को उलाहना देते हुए अपनी विरह-व्यथा व्यक्त करती हैं।
मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज़ को पंछी, फिरि जहाज़ पर आवै।
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
परम गंग को छाँड़ि पियासौ, दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल भावै।
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