कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’को पढ़ कर घर की चारदीवारी के अंदर बैठा हुआ व्यक्ति भी किसी पर्वतीय स्थान को महसूस कर सकता है । कवि की चित्रात्मक शैली का वर्णन करते हुए सिद्ध कीजिए कि कविता में उन्होंने पावस ऋतु का सजीव चित्रण किया है |
Answers
Answer:
इसके कवि 'सुमित्रानंदन पंत जी 'हैं। इसमें कवि ने पर्वतों का सजीव चित्रण किया है। व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है । कवि कहता है कि करघनी के आकर वाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं
Explanation:
पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों। बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है।
Answer:
इसके कवि 'सुमित्रानंदन पंत जी 'हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुंदरता का वर्णन किया है। व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती