India Languages, asked by sangipagikethan4491, 1 year ago

Kavi sammelan ke liye kavita ye jo dusro ko prerit kare

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Answered by pariharmahendrasingh
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एक कवि सम्मेलन में

ऐसे श्रोता मिल गए

जिनकी कृपा से

कवियों के कलेजे हिल गए

एक अधेड़ कवि ने जैसे ही गाया-

" उनका चेहरा गुलाब क्या कहिए।"

सामने से आवाज़ आई-

" लेके आए जुलाब क्या कहिए।"

और कवि जी

जुलाब का नाम सुनते ही

अपना पेट पकड़कर बैठ गए

दूसरे कवि ने माइक पर आते ही

भूमिका बनाई-

"न तो कवि हूँ

न कविता बनाता हूँ।"

आवाज़ आई-

"तो क्या बेवक़ूफ़ बनाता है भाई।"

कवि को पसीना आ गया

और वह घबराहट में

किसी और का गीत गा गया-

"जब-जब घिरे बदरिया कारी

नैनन नीर झरे।"

आवाज़ आई-"तुम भी कहाँ जाकर मरे

यह कविता तो

लखनऊ वाली कवयित्री की है।"

कवि बोला-"हमने ही उसे दी है।"

आवाज़ आई-"पहले तो पल्ला पकड़ते हो

और जब हाथ से निकल जाती है  

तो हल्ला करते हो।"

संयोजक ने संचालक से कहा-

"कविता मत सुनवाओ

जिसके पास गला है

उसको बुलवाओ।"

गले वाला कवि मुस्कुराया

और जैसे ही उसने नमूना दिखाया-

चटक म्हारा चम्पा आई रे रूत थारी

कोई श्रोता चिल्लाया-

"किस लोक गीत से मारी।"

कवि बोला-"हमारी है हमारी

विश्वास ना हो तो संचालक से पूछ लो।"

संचालक बोला-"गाओ या मत गाओ

मैं झूठ नहीं बोलता

गवाही मुझसे मत दिलवाओ।"

संचालक ने दूसरे कवि से कहा-

"गोपालजी आप ही आइए

ये श्रोता रूपी कैरव

कविता को नंगा कर रहे हैं

लाज बचाइए।"

गोपालजी जैसे ही शुरू हुए-

"तू ही साक़ी

तू ही बोतल

तू ही पैमाना"

किसी ने पूछा-"गुरू!

ये कविसम्मेलन है या मैख़ाना।"

कवि बोला-"मैं खानदानी कवि हूँ

मुझसे मत टकराना"

आवाज़ आई-"क्या आप के बाप भी कवि थे।"

कवि बोला-"जी हाँ, थे

मगर आप ये क्यों पूछ रहे हैं।"

उत्तर मिला-"हम आपकी बेवक़ूफ़ी की जड़ ढूंढ रहे हैं।"




pariharmahendrasingh: hiiiiiiiiiiii
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