Kavi vrind ke das dohe arth sahit
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kavi vrindavan kaon hai
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करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।
दोहे का अर्थ –
इस दोहे में कवि वृन्द जी समझाते है कि किसी भी चीज को हासिल करने के लिए अभ्यास करना या साधना करना बेहद जरूरी है क्योंकि अभ्यास या साधना करने से ही असाध्य कार्य अथवा कठिन से कठिन काम भी सिद्ध हो जाते हैं।
कवि वृन्द जी ने यह भी बताया है कि निरंतर अभ्यास करने अथवा कोशिश करने से मंदबुद्धि लोग, अर्थात एक अज्ञानी पुरुष भी ज्ञानी बन जाता है। इसलिए जीवन में सफल होने के लिए साधना बेहद जरूरी है अर्थात साधना ही सफलता की कुंजी है क्योंकि बिना साधना यानि कि बना प्रयास किए कोई भी काम सिद्द नहीं होता है।
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Disclaimer - दोहा लिख कर बताए ता की हम अपनी सहायता उस प्रकार कर सके ।
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