Kavya Saundarya of surdas Ke Pad
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सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।
मुख दधि लेप किए
सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥
प्रभू! जी मोरे औगुन चित न धरौ ।सम दरसी है नाम तुम्हारौ , सोई पार करौ ॥
इक लोहा पूजा मैं राखत , इक घर बधिक परौ ॥सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ ॥जब मिलिगे तब एक बरन ह्वै, गंगा नाम परौ ॥
तन माया जिव ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ॥कै इनकौ निर्धार कीजिये, कै प्रन जात टरौ ॥
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मैं नहिं माखन खायो
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।
हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो|
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥
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कबहुं बढैगी चोटी
मैया कबहुं बढैगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।
काढत गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥
काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन रोटी।
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी॥
सूरदास के पदों कि काव्यगत विशेषताएं :-
1) सूरदास के पदों में भक्ति भाव
का वर्णन है। सूरदास भक्तिकाल के कवि थे ।
तथा भक्ति उनके काव्य में आना जायस था ।
सूरदास भक्तिकाल के सगुण भक्ति के कृष्ण
भक्त शाखा के अन्तर्गत आते है ।वस्तुत: उनके
कव्यो में श्री कृष्ण के प्रति प्रेम का वर्णन
दिखाई देता है।
उदाहरण :-
हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।
समदरसी है मान तुम्हारौ, सोई पार करौ।
2) सूरदास के पदों में वात्सल्य चित्रण देखने
को भी मिलता है । सूरदास ने कृष्ण के बाल
अवस्था का वर्णन करने हेतु वात्सल्य रस का
ही प्रयोग किया है ।
उदाहरण :-
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥
3) सूरदास ने अपने पदों में अलौकिक प्रेम की
व्यजना किया है । उन्होंने गोपी - कृष्ण के
स्वरूप अलौकिक प्रेम को दर्शाया है ।
4) सूरदास के पदों में ब्रज भाषा का पुट
मिलता है। उन्होंने अपने काव्य में ब्रज भाषा
का प्रयोग किया है साथ ही ग्रामीण, अरबी -
फारसी जैसे शब्दो को भी अपने काव्य में
स्थान दिया है ।
5) सूरदास ने अपने काव्यो में ' पद ' छंद का
प्रयोग किया है। उन्होंने ' पद ' छंद को महत्व
दिया है ।
सूरदास के संबंध में विद्वानों का विचार :-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार -
" सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन
शुरू करते हैं तो मानो अलंकार-शास्त्र हाथ
जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है।
उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की
वर्षा होने लगती है। "