kavyavachan spardhekarita nav nondinikarita ayojakana vinanti patra
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मुझे प्रेम के प्रस्ताव में पत्र बहुत प्रिय है हलाकि मैं उस दौर से हूँ जहाँ भाव सम्प्रेषण के लिए पत्र नही बल्कि ई -मेल, मेसेज ये सब होते हैं लेकिन फिर भी पत्र की बात अलग है और जब भी मैं प्रेम की बात करता हूँ तो पत्र अधिकांशतः आ ही जाता है अभी यह पत्र जो आप पढ़ेंगे उसका लक्ष्य एहसासों को शब्दों में हल्की लहर की तरह घुमाकर ले जाते हुए किसी ख़ास के दिल के घाट लगाने का है... फिर उसकी इच्छा।।
तो पढ़िए और समझिये कि यह कविता आपके प्रेम प्रस्ताव से कितना क़रीब है
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
वो लिखा जो कह न पाया
बिन कहे भी रह न पाया
भले कुछ मत भेजना
पर फाड़कर मत फेंकना
बड़ी हिम्मत से लिखा है
पत्र मेरा प्यार वाला...
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
कुछ बात आँखों की तुम्हारी
कुछ बात बातों की तुम्हारी
कुछ जो..तुम्हें मैंने कहा था
जिसे बस मैंने सुना था
वही कुछ था भेजना
थोडा ही पर देखना
तुम पे कितना मर मिटा है
पत्र मेरा प्यार वाला..
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
तस्वीर कैसी है बताना
कोशिश थी तुमको बनाना
इससे कहीं सुन्दर हो यूँ तो
क्या चाँद का अंदाज़ पूछो
भले कुछ मत बोलना
बस इस तरह सहेजना
तकिये के नीचे छिपा लेना
पत्र मेरा प्यार वाला...
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
एक पत्र इसमें और भी है
लिखा जिसमे कुछ नही है
दिया क्यूँ मैंने तुम्हें है
यह भी मुझे कहना नही है
ये बात खुद से छेड़ना
भले कुछ मत भेजना
पर बिन लिखे मत छोड़ना
पत्र मेरा प्यार वाला..
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
एक बात आखिर में कहूँ ?
हाँ.. कहो तो ही कहूँ
ये पत्र बस इतना नही है
बहुत कुछ लिखा नही है
इसमें वही तुम खोजना
भले कुछ मत बोलना
जब समझना जता देना
पत्र मेरा प्यार वाला---
जब मिले तो बता देना
पत्र मेरा प्यार वाला।
- कवि संदीप द्विवेदी
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