(ख) बादशाह का हुकुम था कि जुलूस नहीं निकलेगा, कौमी झंडा नहीं निकलेगा, पर जुलूस निकला.
झंडा भी निकला।
इसका आशय स्पष्ट कीजिए
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असंभव काम को भी संभव बना देते थे। जब उन्हें संजीवनी नहीं मिली तो वे पूरे
वे बड़े वीर और दृढ़-प्रतिज्ञ थे परंतु यह सब होते हुए भी वे बड़े विनम्र थे। उन
को आदरपूर्वक उसके निवास स्थान पर छोड़ आए। इससे पता चलता है कि
जागा निसिचर देखिन केसा। मानहुँ कालु देह धरि बेसा॥
कुंभकरन चूशा का भाई। काहे तब मुख रहे सुखाई।
कया कही सब तेहि अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर पारे। महा महा जोधा संपारे।
दुर्मुख सुरक्षुि मनुज हारी। पर अतिकाय अपन भारी।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे सबर महि सब रनधीगा।।
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