(ख) भ्रमरगीत:
(1) ऊधौ मन नहिं हाथ हमारे।
रथ चढाइ हरि संग गए लै, मथुरा जबहिं सिधारे।।
नातरु कहा जोग हम छाँड़हिं, अति-रूचि कै तुम ल्याए
हम तौ सँखति स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए।।
अजहूँ मन अपनौ हम पावै, तुम तँ होइ तो होइ।
'सूर' सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करेंगी सोइ।।
(II) मधुबन तुम कत रहत हरे?
बिरह-वियोग स्याम-सुंदर के, ठाढ़े क्यों न जरे।।
मोहन बेनु बजावत तुम-तर, साखा टेकि खरे।
मोहे थावर अरू जड़ जंगम, मुनि-जन ध्यान टरे।।
वह चितवनि तू मन न धरत है फिरि फिरि पुहुप धरे।
सूरदास-प्रभु-बिरह-दवानल, नख-सिख-लौं नजरे।। iska bhawarth hindi me kariye jo kar lega use mai 100 points dunga
Answers
ऊधौ मन नहिं हाथ हमारे।
रथ चढाइ हरि संग गए लै, मथुरा जबहिं सिधारे।।
नातरु कहा जोग हम छाँड़हिं, अति-रूचि कै तुम ल्याए
हम तौ सँखति स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए।।
अजहूँ मन अपनौ हम पावै, तुम तँ होइ तो होइ।
'सूर' सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करेंगी सोइ।।
भावार्थ : सूरदास के भ्रमरगीत के प्रसंग में गोपियां उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! हमारा मन हमारे वश में नहीं है। हमारे हाथ में नहीं है। श्री कृष्ण मथुरा जाते समय जब रथ में चढ़कर मथुरा जा रहे थे तभी वह अपने साथ हमारे मन के ले गए। तुम को भेजकर कहते हैं कि योग के द्वारा हम अपने इस मन को वश में करें। हम तो श्रीकृष्ण के प्रेम की प्यासी थीं, लेकिन तुम हमें योग का संदेश पढ़ा रहे हो। जब हम अपना मन पा लेंगे तब तुम हमें अपनी बातें कहना। अभी हमारा मन हमारे पास नहीं है, इसलिए तुम्हारी बातें हमारी समझ में नहीं आ रही।
मधुबन तुम कत रहत हरे?
बिरह-वियोग स्याम-सुंदर के, ठाढ़े क्यों न जरे।।
मोहन बेनु बजावत तुम-तर, साखा टेकि खरे।
मोहे थावर अरू जड़ जंगम, मुनि-जन ध्यान टरे।।
वह चितवनि तू मन न धरत है फिरि फिरि पुहुप धरे।
सूरदास-प्रभु-बिरह-दवानल, नख-सिख-लौं नजरे।।
भावार्थ : गोपियां मधुबन से कहती हैं कि हे मधुबन तुम हमारे स्वामी श्रीकृष्ण के बिना हरे-भरे कैसे रह पा रहे हो। तुम श्रीकृष्ण के बिना भस्म क्यों नहीं हो गए। श्रीकृष्ण तुम्हारे नीचे ही बैठकर बंसी बजाते थे और तुम मंत्र-मुग्ध होकर उनकी बंसी की धुन को सुनते रहते थे। उनकी बंसी की मधुर तान से गतिशील प्राणी जड़वत् हो जाते थे। ऋषि मुनि भी अपने ध्यान से विचलित हो जाते थे। तुम उस चितवन को याद क्यों नहीं करते और बार-बार पुष्पित हो रहे हो। तुम हमारे स्वामी श्रीकृष्ण के वियोग में दावानल में जड़ से चोटी तक भस्म क्यों नही हो गये?