(ख) गलता लोहा पाठ के आधार पर पहाड़ी गांवो की समस्याओं पर विचार विश्ले
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शेखर जोशी नयी कहानी दौर के संभवतः अकेले ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने उपन्यास नहीं लिखा. शेखर जोशी की कहानियों में मनुष्य के नैतिक बोध की सीमाओं एवं शक्तियों की पहचान की गई है. साथ ही यह प्रश्न भी कि वर्तमान समय में मनुष्य के लिए नैतिक बने रहना संभव है क्या?. वे कौन सी ताकतें है जो किसी देश-काल में मनुष्य के नैतिक बोध को नियंत्रित करती हैं. क्या वह महज़ उसके आत्म से ही निर्मित होता है? क्या महज़ आत्म संघर्ष ही मनुष्य को किसी देश कल में नैतिक बनाये रख सकता है जैसा कि निर्मल वर्मा की कई कहानियों में होता है लेकिन शेखर जोशी की कहानियों में यह बहुत आसानी से देखा जा सकता है कि मनुष्य का यह जो नैतिक विचलन है वह समाज प्रदत्त है. ‘नौरंगी बीमार है’ में अंततः नौरंगी समाज में पहले से मौजूद नैतिक विचलन का शिकार होता है
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