ख. घोड़े में क्या विशेषताएँ थीं?
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विशेष विवाहोत्सव और धार्मिक जलूसों में सजे-धजे घोड़ों को देखकर उत्साह का संचार हो जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जयंती, महाराणा प्रताप जयंती और रामनवमी के शुभ अवसर पर सुसज्जित अश्व भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं।
10,00,000 वर्ष पूर्व से अब तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि के अनुसार घोड़े को पालतू बनाया और अन्यान्य अच्छी अच्छी नस्लों को पैदा किया। बोझा खींचने, घुड़दौड़ में दौड़ाने, सवारी करने और रथ आदि में चलने वाले अलग अलग प्रकार के घोड़ों की उत्पत्ति हुई है।
विदेशों में घोड़ों के नाम उनके जीवनक्रम के अनुसार दिए गए हैं। भारत में घोड़ों को उनके रंग तथा वंश के अनुसार मुश्की, अरबी आदि नाम दिए जाते हैं।
कुछ लोगों का यह भ्रम है कि घोड़ा मनुष्य के बराबर बुद्धिमान होता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, इसकी बुद्धि सबसे मूर्ख मनुष्य से भी कम होती है। घोड़े में दृष्टि की तीव्रता होती है, क्योंकि संसार के स्थलीय जीवों में किसी प्राणी की आँख शरीर के अनुुपात में घोड़े के समान बड़ी नहीं होती। दृष्टि की तीव्रता होते हुए भी इसकी आँख में गर्तिका[1]नहीं होती। अत: इसके लिये हमारे समान दृष्टि को केंद्रित करना संभव नहीं है। बिना सिर घुमाए काफ़ी क्षेत्र में देखना इसकी आँखों से संभव है। इसकी आँखें और नाक दोनों मनुष्य से अधिक सक्रिय होती हैं