(ख) जबरा शायद समझ रहा था कि स्वर्ग यही है और हलकू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता है । वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा में पहुँचा दिया । नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिए थे ।
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जबरा शायद समझ रहा था कि स्वर्ग यही है और हलकू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता है । वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा में पहुँचा दिया । नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिए थे ।
व्याख्या : ‘पूस की रात’ कहानी मैं यह उस समय की स्थिति का वर्णन है, जब गाने का मुख्य पात्र हल्कू जाड़े की सर्द रात में अपने खेतों की रखवाली करते समय ठंड से ठिठुर रहा था। उसके पास जो एकमात्र फटा-पुराना कंबल था। उसमें उसका ठंड से बचाव नहीं हो रहा था और अंततः ठंड से बचने के लिए उसने अपने पालतू कुत्ते जबरा को अपनी गोद में सुला लिया ताकि दोनों एक-दूसरे की शरीर की गर्मी से राहत मिले। उस समय दोनों को अपनी यह निकटता का एहसास स्वर्ग सुखद लग रहा था, क्योंकि वह ठंड नामक मुसीबत से उन्हें थोड़ी राहत मिली थी। यहाँ पर इंसान और जानवर के बीच का भेद मिट गया था, स्पष्ट हो रहा था कि जहाँ पर मुसीबत हो, कठिनाई हो, कष्ट हो, तो वहाँ इन सब से बचाव के लिए मानव और पशु के बीच का भेद मिट जाता है। ना ही हल्कू को जबरा जैसे जानवर की गंध से कोई तकलीफ थी और जबरा तो हल्कू की गोद में स्वर्ग का आनंद अनुभव कर रहा था। दोनों अपनी-अपनी अवस्था भूलकर ठंड से राहत की उस सुखद अनुभूति में खो गए थे।
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