ख. क्या कुटिल व्यंग्य ! दीनता वेदना से अधीर,
आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है,
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते,
कुछ और धरो धीरज, किस्मत अव छपती है |
किस्मतें रोज़ छप रहीं, मगर जलधार कहाँ ?
प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे,
पानी विलीन होता जाता है रेतों में |
हिल रहा देश कुत्सा के जिन आधातों से,
वे नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं ?
निमीणों के प्रहरियों ! तुम्हें ही चोरों के काले
चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं ?
तो होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो,
सब दिन तो यह मोहिनी न चलनेवाली है. )
होती जाती हैं गर्म दिशाओं की साँसे,
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है |
प्रश्न है-
21)
i) उपर्युक्त काव्यांश में गरीबों के प्रति क्या कुटिल व्यंग्य है ?
ii) “पानी विलीन होता जाता है रेतों में - पंक्ति से क्या आशय है ?
iii) उपर्युक्त काव्यांश में कौन-सी पंक्ति परिवर्तन होने की चेतावनी दे रही है ?
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Answer:
1. pani
2.pani sara waste hokar khatam ho raha hai
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