(ख) कबीर ने ईश्वर के कण - कण में बसे होने की बात कैसे समझाई है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए
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buagban have jaggah hai ...Kabir kehte hai ...age hum hamare ahankar , gussa tyag de toh game buagban awasya mil jayenge ....jab gussa ahankar Hoga toh hame buagban Nahi dikhenge....
Kabir me Kaha ...jab mere andar gussa air ghamand tha tab buagban Nahi the aur jab gussa aur irsha Nahi hai tab buagban Ka bass hai mere andar....
HOPE THIS WILL HEPS U
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ईश्वर के संबंध में कबीर के अनुभव और मान्यताएँ जनमानस की सोच के विपरीत थे।
- जनमानस का मानना है कि ईश्वर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे तीर्थ स्थलों या दुर्गम स्थानों पर रहता है।
- मनुष्य उसकी खोज में यहाँ वहाँ भटकता हुआ जीवन बिता देता है, परंतु कबीर की अनुसार
- ईश्वर हर प्राणी यहाँ तक कि कण-कण में विद्यमान है।
- ईश्वर की प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग अत्यावश्यक है। ईश्वर के विभाग में व्यक्ति जी नहीं सकता है। यदि वह जीता है तो उसकी दशा पागलों जैसी हो जाती है।
- ईश्वर के बारे में जाने बिना कोई ज्ञानी नहीं कहला सकता है। ईश्वर को पाने के लिए विषय वासनाओं और सांसारिकता का त्याग आवश्यक है।
- ईश्वर सब ओर व्याप्त है।
- वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है।
- इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं।
- हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं।
- कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है।
- ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है और ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं, सोते नहीं है अर्थात जाग्रत अवस्था में रहते हैं।
#SPJ3
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