Hindi, asked by meher202004, 1 year ago

खा खाकर कुछ पाएगा नहीं ,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा समभावी ,
खुलेगी सांकल बंद द्वार की ।

Q - समभावी से क्या अभिप्राय है ? इस वाख में कवयित्री क्या उपदेश देना चाहती है ?

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Answered by Risingbrainlystar
172
प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने हृदय को उदार , अहंकार-मुक्त एवम् समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश देते हुए कहा है कि केवल और केवल भोग-उपभोग में लगे रहने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । इससे व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। यदि भोग का सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो मन में त्यागी होने का अहंकार पैदा हो जाता है,यह स्थिति और भी भयानक होती है,क्योंकि अहंकार विनाश का कारण है। इसलिए कवयित्री ने बीच का रास्ता सुझाते हुए कहा है कि हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए,किन्तु सीमा से परे नहीं। तात्पर्य यह कि हमें त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए। इस समानता के कारण हमारे अन्दर समभाव उत्पन्न होगा जिससे हमारे हृदय में उदारता का आविर्भाव होगा।जैसे ही हमारे अन्दर उदारता आएगी, हमारे अन्दर के स्वार्थ,अहंकार एवं हार्दिक संकीर्णता स्वाहा हो जाएगी । हमारा हृदय अपने - पराए के भेद से उपर उठ जाएगा और समस्त चराचर के लिए हमारे हृदय का द्वार खुल जाएगा।



Answered by bhatiamona
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समभावी से क्या अभिप्राय है ? इस वाख में कवयित्री क्या उपदेश देना चाहती है ?

समभावी से अभिप्राय है कि मनुष्य को मनुष्य जाति और धर्म संबंधी भावनाओं को तोड़ कर भोग और त्याग के बीच में संतुलन रखते हुआ मध्य मार्ग को अपनाएगा|  

वाख में कवयित्री  मनुष्य उपदेश देती है कि मनुष्य को दिखावे , भूखे रह कर ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है| मनुष्य को समझना होगा ईश्वर हर कण-कण में है| ईश्वर मनुष्य के अंदर है|   मनुष्य को समभावी बनना होगा| मनुस को भोग और त्याग के बीच में समानता रखनी होगी| हठ साधना करने से कोई लाभ नहीं मिलता है| ईश्वर की भक्ति करने के लिए सहज भक्ति  करनी पड़ती है|

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