Hindi, asked by negiashish4207, 8 months ago

(ख)
'मीरा ने प्रेम के मिलन और विरह दोनों पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति की है।' इस कथन को स्पष्ट
हुए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(पाठ-4​

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Answered by shishir303
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'मीरा ने प्रेम के मिलन और विरह दोनों पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति की है।' इस कथन को स्पष्ट  हुए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

➲   मीरा ने प्रेम के मिलन और विरह दोनों पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति की है। उनके पदों में प्रेम और विरह दोनों भावों का सुंदर प्रस्तुतीकरण किया गया है। मीरा ने अपने पदों के माध्यम से श्री कृष्ण के प्रति प्रेम की समर्पण भावपूर्ण ढंग से प्रयुक्त की है। समर्पण प्रेम और अभिव्यक्ति का अनिवार्य अंग होता है, समर्पण का अर्थ है अपनी इच्छा और रुचि से अपने इष्ट के प्रति अपने प्रिय के प्रति समर्पित हो जाना। यही समर्पण भावना मीरा के पदों में प्रयुक्त हुई है।

मीराबाई कहती हैं कि...

जो पहिरावे सोई पहिरूं, जो दे सोई खाऊं।

मेरी उण की प्रीत पुराणी, उण बिन पल भर न रहाऊँ।

जहाँ बैठावै तित ही बैठूँ, बेचै तो बिक जाऊँ।

यह पंक्तियां मीरा के प्रेम-समर्पण भाव की पराकाष्ठा प्रकट करती है।

उसी तरह मीरा बाई ने अपने पदों में विरह पीड़ा, व्याकुलता तथा वेदना को भी अत्यंत सजीव रूप में अभिव्यक्त किया है।

मीरा बाई कहती हैं..

हेरी मैं तो दर्द दिवाणी, मेरो दर्द न जाणे कोई।  

घायल की गति घायल जाणे, कि जिण लाई होई।

इस तरह मीरा बाई ने प्रेम और विरह दोनों भावों को अपने पदों के माध्यम से सुंदरतम ढंग से प्रस्तुत किया है।

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