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ख) प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।
Answers
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।
इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है क्योंकि " क" वर्ण की पुनरावृत्ति हुई है।
- इन पंक्तियों में अनुप्रास प्रयुक्त किया गया है क्योंकि क वर्ण का बार बार प्रयोग किया गया है। जिस काव्य में एक ही वर्ण बार बार दोहराया जाता है वह अनुप्रास अलंकार होता है ।
- अनुप्रास अलंकार दो शब्दो से जुड़कर बना है अनु तथा प्रास । अनु शब्द से तात्पर्य है बार बार तथा प्रास शब्द का अर्थ है वर्ण।
- यदि किसी पंक्ति में किसी वर्ण के विशेष प्रयोग के कारण पंक्ति में लय , सुंदरता व चमत्कार उत्पन्न हो जाता है वह शब्दालंकार कहलाता है।
- अनुप्रास अलंकार शब्दालंकार का ही एक भेद है।
- अलंकार से संबंधित प्रश्न कई बार परीक्षाओं ने पूछे जाते है। अतः विद्यार्थियों को अलंकार का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।
#SPJ3
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Answer:
(कवि भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की थी | यह कविता उसी का अंश है | इन पंक्तियों में युद्धरत छत्रसाल की तलवार और बरछी के पराक्रम का वर्णन किया है | )
निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों|
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों|
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों|
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल कों|
भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी – सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के|
Explanation:
छत्रसाल – प्रशस्ति
(कवि भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की थी | यह कविता उसी का अंश है | इन पंक्तियों में युद्धरत छत्रसाल की तलवार और बरछी के पराक्रम का वर्णन किया है | )
(कवि भूषण ने महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की थी | यह कविता उसी का अंश है | इन पंक्तियों में युद्धरत छत्रसाल की तलवार और बरछी के पराक्रम का वर्णन किया है | )
निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों|
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों|
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों|
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल कों|
भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी – सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के|
बखतर पाखरन बीच धँसि जाति मीन,
पैरि पार जात परवाह ज्यों जलन के|
रैयाराव चम्पति के छत्रसाल महाराज,
भूषन सकै करि बखान को बलन के|
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के|
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#SPJ3